स्वच्छ भारत मिशन: व्यवहार परिवर्तन का दशक

Sep 23, 2024 - 18:53
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स्वच्छ भारत मिशन: व्यवहार परिवर्तन का दशक

स्वच्छ भारत मिशन : व्यवहार परिवर्तन का दशक 

महात्मा गाँधी की 145 वीं जयंती पर 2अक्टूबर 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की थी, तो शायद ही किसी को इसके परिवर्तनकारी प्रभाव का अंदाजा रहा होगा l व्यवहार परिवर्तन के आह्वान के रूप में शुरू हुआ स्वच्छता अभियान आज एक वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त पहल बन चुका है, जिससे शिशु मृत्यु दर और बीमारियों में कमी आई है, लड़कियो की स्कूल में उपस्थिति बढ़ी है, महिलाओं के खिलाफ अपराध कम हुए हैं और आजीविका में सुधार हुआ है। स्वच्छ भारत मिशन अपनी 10वीं वर्षगांठ मना रहा है l 2अक्टूबर2024 को यह अभियान अपनी यात्रा का दस वर्ष पूरा कर रहा है l

स्वच्छता, सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ा एक बुनियादी उपाय है। स्वच्छता से डायरिया, हैजा, टाइफाइड, हेपेटाइटिस, कृमि संक्रमण एवं मलाशय संबंधी रोग जैसी जल-जनित बीमारियों के साथ-साथ कुपोषण का खतरा कम हो जाता है।

भारत में स्वच्छता का इतिहास बहुत पुराना है और इसकी शुरुआत सिंधु घाटी सभ्यता से होती है, जहां शौचालय निर्माण एवं अपशिष्ट प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग किया जाता था। हमारे शास्त्रों में कहा गया है– ‘स्वच्छे देहे स्वच्छचित्तं, स्वच्छचित्ते स्वच्छज्ञानम्’ यानी स्वच्छ शरीर में शुद्ध मन का निवास होता है और शुद्ध मन में सच्चे ज्ञान का निवास होता है।

इस समृद्ध विरासत के बावजूद, व्यापक स्वच्छता की दिशा में भारत की यात्रा चुनौतियों से भरी रही है। भारत सरकार द्वारा विभिन्न स्वच्छता कार्यक्रमों- जैसे केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम, संपूर्ण स्वच्छता अभियान और निर्मल भारत अभियान- शुरू किये गए l इन सभी कार्यक्रमों की सहायता से वर्ष 2014 तक ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता कवरेज मात्र 39 प्रतिशत तक रहा l 

दुनिया भर में होने वाले खुले में शौच का लगभग 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी रही । हमारे देश में 50 करोड़ से अधिक लोग खुले में शौच करते थे। हमारी महिलाओं के सामने अधेरे में अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने और अपनी गरिमा एवं सुरक्षा बनाए रखने की दुविधा थी।

इसी पृष्ठभूमि को ध्यान में रख कर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पांच वर्षों में ग्रामीण भारत को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) बनाने के लक्ष्य के साथ 2014 में स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) की शुरुआत किया और सबके प्रयास और जनभागीदारी से देश ने 2 अक्टूबर 2019 को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर खुले में शौच मुक्त उपलब्धि हासिल कर ली। पांच वर्षों के दौरान, ग्रामीण स्वच्छता कवरेज बढ़कर शत-प्रतिशत हो गया।

 स्वच्छ भारत मिशन एक ऐसा राष्ट्रव्यापी आंदोलन बन गया,जिसने व्यवहार में परिवर्तन से संबंधित एक ठोस क्रांति के साथ बुनियादी ढांचे के विकास को मिलाकर एक अरब से अधिक लोगों को प्रेरित किया। इसकी पहचान एक 'जन आंदोलन' के तौर पर बन गयी और यह शायद व्यवहार में परिवर्तन से संबंधित दुनिया की सबसे बड़ी कवायद थी। बच्चों, महिलाओं, पुरुषों, समुदाय के नेताओं, नागरिक समाज और सरकारी मशीनरी ने एकजुट होकर काम किया। स्वच्छता से जुड़े संदेश हर माध्यम से लोगों तक पहुंचे। मशहूर हस्तियों ने इस सामूहिक सुर में सुर मिलाया। ग्राम-स्तर के स्वयंसेवक ('स्वच्छाग्रही') ज़मीनी स्तर पर परिवर्तन के चैंपियन बन गए। प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों, बैठकों, ‘मन-की-बात’ में किए जाने वाले वार्तालापों और विभिन्न स्थानों एवं परिसरों की सफाई के आदर्श कार्यों के माध्यम से देश का नेतृत्व किया और लोगों को प्रेरित किया।

एसबीएम चरण-I की सफलता के बाद, चरण-II की शुरुआत की गई। इस चरण का उद्देश्य ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन, परिदृश्य स्वच्छता और समग्र ग्रामीण स्वच्छता के व्यापक पहलुओं का समाधान करते हुए ओडीएफ संबंधी उपलब्धियों को बनाए रखना है। वर्ष 2024-25 तक, सभी गांवों को स्थायी तौर-तरीकों और बेहतर स्वच्छता की विशेषता से लैस ओडीएफ प्लस मॉडल में बदलने का लक्ष्य है। इस मिशन का अगला लक्ष्य संपूर्ण स्वच्छता है- जिसके लिए देश के प्रत्येक नागरिक, समुदाय और संस्थान की ओर से निरंतर समर्पण की आवश्यकता होगी।

वर्ष 2017 में एक अध्ययन में, यूनिसेफ ने अनुमान लगाया कि 93 प्रतिशत महिलाएं घर में शौचालय उपलब्ध होने के बाद सुरक्षित महसूस करती हैं, जो महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा को बढ़ाने में एसबीएम की भूमिका को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, इस अध्ययन में किए गए आर्थिक विश्लेषण से पता चला कि ओडीएफ गांवों में प्रत्येक परिवार को स्वास्थ्य संबंधी देखभाल पर अपेक्षाकृत कम खर्च करने पड़े इससे आर्थिक और समय दोनों कि बचत हुई l

स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के बीच के संबंध को देखते हुए, एसबीएम से हासिल हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी लाभ अपरिहार्य हैं। 

स्वच्छ भारत मिशन इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि समर्पण, सहयोग, योजना, शानदार कार्यान्वयन और निरंतर जन आंदोलन के जरिए क्या कुछ हासिल किया जा सकता है। स्वच्छ भारत मिशन की सफलता के चार मंत्र- राजनीतिक इच्छाशक्ति, सार्वजनिक वित्त, साझेदारी और जनभागीदारी- के साथ-साथ अनुनय, इस कार्यक्रम की सफलता एवं प्रसार में सहायक रहे हैं। 

अब जबकि हम विकसित भारत @2047 की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, हमें स्वच्छता और साफ-सफाई के मामले में वैश्विक स्तर पर अग्रणी देश के रूप में उभरने की जरूरत है। व्यवहार में बदलाव को बनाए रखने, निर्मित शौचालयों का निरंतर उपयोग सुनिश्चित करने और अपशिष्ट प्रबंधन के उन्नत उपायों को समन्वित करने की प्रतिबद्धता अटल रहनी चाहिए। स्वच्छता एक ऐसा साझा मूल्य बनना चाहिए, जिसके स्वामित्व और पालन की जिम्मेदारी हम सभी को उठानी चाहिए l एसबीएम के एक दशक की अवधि में हमें अभूतपूर्व लाभ हुए हैं- स्वच्छ पर्यावरण, महिलाओं की गरिमा एवं सुरक्षा, जीवनयापन में आसानी, घरेलू बचत और हमारी परंपरा के अनुरूप स्वच्छता की संस्कृति से हम समृद्ध हुए हैं। अब हम सार्वजनिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और जीवन बचाने में एसबीएम की एक मजबूत छाप भी देख रहे हैं 

व्यवहारिक रूप में देखा जाय तो व्यक्तिगत, समुदायिक स्वछता के प्रति लोगों का व्यवहार बदला है l अब ट्रेन हो या बस या अन्य सार्बजनिक स्थल लोग खान -पान से निकले अवशिष्ट को नियत स्थान पर ही फेकते हैं l हाथ कब कब धोना चाहिए यह बच्चे बखूबी जान गए है l

आज स्कूल, गली, मुहल्ले, अस्पताल साफ दिखाई देने लगे हैं l शहर की गलियों में सिटी बजना घर के कूड़ा उठान का संदेश बनगया है l

घर घर में शौचालय बन गए हैँ सार्वजनिक, धार्मिक एवं भीड भाड़ वाले क्षेत्रों में सामुदायिक शौचालय एक बुनियादी सुबिधा के साथ रोजगार सृजन के साधन बन गए हैं l

अब कार्यालय हो या सार्बजनिक स्थल लोग अब डस्ट विन की तरफ उन्मुख हुए हैं l खुले में अवशिष्ट फेकने में लोगों को अब हिचक होने लगी है l लेकिन सिंगल यूज प्लास्टिक आज भी इस अभियान के लिए एक चुनौती बनी हुई है l दूसरी समस्या है गुटका तम्बाकू खा कर दीवारों और सड़क के डिवाइडर पर थूकने की, इसका समाधान भी जागरूकता पर निर्भर है l

एक कदम स्वच्छता की ओर का घोष्य वाक्य गाँधी जी के स्वच्छ भारत के सपने को साकार कर रहा है l

 एक दशक पूर्व शुरू स्वच्छ भारत मिशन अपनी 10वीं वर्षगांठ भी मना रहा है, इस वर्ष स्वच्छता ही सेवा 2024 अभियान की थीम ‘स्वभाव स्वच्छता-संस्कार स्वच्छता’ है। इस अभियान को राजस्थान के झुंझुनू में एक बड़े कार्यक्रम में मुख्य अतिथि भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़, केंद्रीय आवासन एवं शहरी कार्य मंत्री एम.एल. खट्टर, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री श्री अविनाश गहलोत और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में 17 सितंबर को राष्ट्रीय स्तर पर शुरू किया गया स्वच्छता ही सेवा पखवाड़ा 1 अक्टूबर 2024 तक चलेगा l 

स्वछता ही सेवा पखवाड़ा में तीन खास कार्यक्रम के तहत पूरे देश में 11 लाख से ज़्यादा कार्यक्रमों की योजना बनाई गई है। बड़े पैमाने पर सफाई अभियान के लिए लगभग 5 लाख स्वच्छता लक्षित इकाइयों  की पहचान की गई है। इस पखवाड़े के दौरान स्वच्छता में जन भागीदारी कार्यक्रमों की भी योजना बनाई गयी है।  ‘एक पेड़ माँ के नाम’ कार्यक्रम के तहत पौधारोपण अभियान चलाया जा रहा है। पूरे देश में लाखों  सफ़ाई मित्र सुरक्षा शिविरों में हिस्सा लेंगे। 

पिछले एक दशक में स्वच्छ भारत मिशन ने नागरिकों, संगठनों, राज्य सरकारों, केंद्रीय मंत्रालयों, गैर सरकारी संगठनों, स्कूल कालेजों और उद्योगों के अथक समर्पण के माध्यम से गांवों और शहरों का स्वरूप बदल चुका है, ये सभी स्वच्छता के साझा दृष्टिकोण के लिए निरंतर एकजुट हैं। देश भर में लगभग 12 करोड़ परिवार जिनके पास पहले सुरक्षित स्वच्छता की पहुंच नहीं थी, उन्हें अब शौचालय उपलब्ध कराए गए हैं। स्वच्छ भारत के लिए 15 दिवसीय राष्ट्रीय सामाजिक एकजुटता अभियान के दौरान सभी राज्य, स्थानीय निकाय, केंद्रीय मंत्रालय, सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन, स्वयं सेवी संस्थाओं सहित अन्य हितधारक विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेंगे, जो देश को स्वच्छ और कचरा मुक्त बनाने में योगदान देंगे।

 स्वछता का संबध निरंतरता का है, अवशिष्ट निकलना स्वाभाविक है उसका उचित निपटान स्वछता का अंग है l हम न गंदगी करेंगे और न दूसरों को गंदगी करने देंगे इस भाव को बना कर ही स्वछता अभियान को जारी रखने की आवश्यकता है l

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