हर मोड़ पर मंदिर ,हर छांव में कथा...अयोध्या धाम से हनुमान जयंती पर विशेष

हर मोड़ पर मंदिर ,हर छांव में कथा...अयोध्या धाम से हनुमान जयंती पर विशेष

Apr 12, 2025 - 23:56
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हर मोड़ पर मंदिर ,हर छांव में कथा...अयोध्या धाम से हनुमान जयंती पर विशेष

हिन्द भास्कर:- इस बार अयोध्या आया तो ठहरना हनुमानगढ़ी नाका के पास हुआ—अपने ही रिश्तेदार के घर। जैसे बजरंग बली ने खुद ही ठिकाना तय कर दिया हो…

कल रात देर से अयोध्या पहुँचा… थका हुआ शरीर, लेकिन मन में तूफ़ान था। कई महीनों से जिस पुकार को टालता रहा, आज वही पुकार मुझे खींच लाई थी—अयोध्या की पुकार…

चारों ओर एक अद्भुत सन्नाटा था। ना शोर, ना चमक-दमक—बस हवाओं में घुला हुआ राम नाम। सरयू किनारे खड़ा हुआ तो लगा, जैसे इस नदी ने सब देखा है— राम का वनगमन, उनका लौटना, और अंत में गुफ्तारघाट से उनका स्वर्गारोहण।

मैंने आँखें बंद कीं… और उसी पल महसूस किया, जैसे किसी ने मेरा हाथ पकड़ लिया हो। शब्द नहीं थे, बस एक अहसास था… हनुमान जी का अहसास।

सुबह जब आँख खुली, सबसे पहले पहुँचा—गुफ्तारघाट। जहाँ प्रभु श्रीराम ने देह का त्याग किया। सरयू की लहरें जैसे उनके चरण-स्पर्श से अब भी पावन हैं। मन इतना भावविभोर हुआ कि कुछ पल मैं खुद को भूल गया।

और फिर पहुँचा—पंचमुखी हनुमान मंदिर। जहाँ हनुमान जी पाँच मुखों में प्रकट होते हैं— पूर्व में हनुमान, दक्षिण में नरसिंह, पश्चिम में गरुड़, उत्तर में वराह और ऊपर में हयग्रीव। हर मुख से अलग ऊर्जा, लेकिन हर रूप में एक ही संदेश— “मैं हूँ… बस पुकारो।”

उसके बाद अयोध्या की गलियों में भटकता रहा… हर मोड़ पर कोई मंदिर, हर छांव में कोई कथा। नया घाट, राम की पौड़ी, कनक भवन, नागेश्वरनाथ मंदिर, भरतकुंड, और फिर पहुँचा—हनुमानगढ़ी।

हनुमानगढ़ी की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए लगा जैसे कोई अदृश्य शक्ति मुझे ऊपर खींच रही है। ढोल की थाप, मंदिर की घंटियाँ, और जयकारों की गूंज— सब मिलकर भीतर एक महा-आरती कर रहे थे। मैं एक कोने में बैठ गया, आँखें मूंद लीं, और धीरे से कहा—“हे हनुमान, मुझे भी वैसी ही निष्ठा दो जैसी तुम्हारी श्रीराम के प्रति थी।”

उस भाव में बहते हुए पहुँचा—प्राचीन शिव मंदिर। वहाँ जैसे खुद शिव ने मेरा इंतज़ार किया हो। मत्था टेका, जल चढ़ाया, और उसी क्षण भीतर से आवाज़ आई— “हनुमान कोई और नहीं… शिव ही तो हैं।”

राम, हनुमान और शिव—तीनों ने जैसे अयोध्या में मिलकर मुझे स्वीकार कर लिया। हर दर्शन, हर मंदिर, हर आशीर्वाद… एक गहराई से मुझे भीतर तक बदल रहा था।

आज जब लौट रहा हूँ, तो शरीर भले यहाँ है, लेकिन आत्मा वहीं अयोध्या की गलियों में छूट गई है। जहाँ हर दीवार बोलती है… “आओ, जब बुलाए राम… और जब पुकारे हनुमान।”

अगर ये शब्द पढ़ते हुए आपके भीतर भी कुछ हिला है, तो रुकिए मत… बस एक बैग उठाइए… और निकल पड़िए…

क्योंकि अयोध्या सिर्फ एक जगह नहीं, वो एक अनुभव है। एक जागृति है। एक गूंज है… जो आत्मा को पुकारती है। अयोध्या जहां हर दीवार बोलती है - जय श्रीराम। जय हनुमान। हर हर महादेव।

नवीन पांडेय (वरिष्ठ रंग कर्मी एवं लब्धप्रतिष्ठित उद्घोषक)

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