दमनकारी अधिवक्ता संशोधन अधिनियम 2025 किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं - रत्नाकर सिंह
कचहरी के आक्रोश पर परिचर्चा

मेडिक्लेम, बीमा, अधिवक्ता प्रोटेक्शन एक्ट जरूरी: प्रदीप, रवि शंकर,
शील वर्धन
गोरखपुर।अधिवक्ता संशोधन अधिनियम 2025 केंद्र सरकार की एक दमनकारी नीति का द्योतक है ,जिसका उद्देश्य अधिवक्ताओं को उनके मौलिक अधिकारों और उनके अस्तित्व को पूरी तरह से नकार दिया जाना है।
उक्त विचार वरिष्ठ अधिवक्ता और बार एसोसिएशन सिविल कोर्ट के पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष रत्नाकर सिंह ने आज एक चर्चा के दौरान व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस संबंध में अधिवक्ता पूरी तरह से उद्वेलित है और बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश बर काउंसिल ऑफ़ इंडिया आह्वान पर आज दिनांक 25 फरवरी 2025 को न्यायिक कार्य से विरत रहकर कर इस संशोधन के खिलाफ अपना विराट विरोध प्रदर्शन किया। अधिवक्ता न्याय के रथ का महत्वपूर्ण पहिया होता है जिसे ऑफिसर ऑफ द कोर्ट कहा जाता है। न्यायपालिका को व्यवस्थापिका के साथ मिलाने का जो षड्यंत्र सरकार द्वारा किया जा रहा है इसे अधिवक्ता कतई स्वीकार नहीं करेगा ।
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप त्रिपाठी ने कहा सरकार अधिवक्ताओं की ताकत से, उनकी एकजुटता से घबराती है, क्योंकि अधिवक्ता सदैव न्याय का साथ देता है और उसके सामने कौन है वह इसका कतई भी बहुत परवाह नहीं करता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता रवि शंकर पाठक ने कहा पूरा जीवन न्याय के लिए समर्पण के बावजूद अधिवक्ता का भविष्य पूरी तरह अंधकार में होता है। इसलिए अधिवक्ता आज अधिवक्ता प्रोटेक्शन एक्ट की लगातार मांग करता रहा है, साथ ही वह मेडिक्लेम और बीमा की भी मांग कर रहा है।
वरिष्ठ अधिवक्ता शीलवर्धन प्रताप सिंह ने कहा सरकारें इन संशोधन में इन सारे मुद्दों को पूरी तरह से नकार रही है। जिन प्रदेशों की सरकार अधिवक्ता प्रशिक्षण एक्ट देने का भी मन बना रही है वहां राज्यपाल इसे माननीय राष्ट्रपति के सहमति न मिलने का आधार बनाकर रोक रही है। इसमें सर्वाधिक नागवार बिंदु बार काउंसिल आफ इंडिया में नामित सदस्यों का प्रावधान है जो सरकार की दूषित मानसिकता को प्रदर्शित करता है। इनमें से परिषद का मात्र एक सदस्य रहेगा। सरकार पूरी तरह से दमन पर आमादा है।
श्री रत्नाकर सिंह ने कहा सरकार अधिवक्ताओं की हर आवाज को दबाना चाहती है। अब अधिवक्ता लामबंद है। उसे अधिवक्ता प्रोटेक्शन एक्ट चाहिए, इन संशोधनों को तत्काल निरस्त किया जाना चाहिए। उसे 10 लाख का मेडिक्लेम चाहिए और किसी अधिवक्ता की मृत्यु पर 10 लाख की बीमा राशि चाहिए। और नियम बनाने का जो अधिकार पूर्व की भारतीय परिषद को था वह उसके पास बरकरार रहे । चर्चा में वरिष्ठ अधिवक्ता नित्यानंद मौर्य दयाराम सोनकर ,महिला अधिवक्ता श्वेता यादव, आकाश सिंह राकेश रावत ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
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