कर्नाटक. राममनोहर लोहिया और समाजवाद

Oct 12, 2025 - 16:44
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कर्नाटक. राममनोहर लोहिया और समाजवाद

दीपक मिश्र

कर्नाटक की महान धरती की फिजाओं में सामाजिक सदभाव, सांस्कतिक समरसता, समत्व का उदात्त भाव और समाजवाद प्राण-वायु की तरह समावेशित अथवा रची-बसी है। कर्नाटक में अन्याय, अतिरंजना और अनर्गलता के प्रति प्रतिकार की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। कर्नाटक के लोकजीवन के अंतस् को समाजवाद और महान क्रांतिधर्मी समाजवादी चिन्तक डा० राममनोहर ने काफी प्रभावित किया है। लोहिया ने केवल कर्नाटक की राजनीति, अपितु साहित्य, संस्कति और यहां तक कि सिनेमा को भी नई दिशा वधारा दी है। सियासत, साहित्य और सिनेमा के कछ प्रतिनिधि नामों यथा गोपाल गौडा शांतिवेरी , पट्टाभिराम रेड्डी, उडुपी राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति, महंत देवरु नंजुंदास्वामी, पल्या लंकेश, तेजस्वी से लेकर जी०एच० पटेल, एस. बंगरप्पा के उल्लेख से लोहिया के प्रभाव को रेखांकित किया जा सकता है । ये सभी स्वयं को सदैव लोहिया से प्रभावित व खुद को समाजवादी कहते रहे हैं। स्वतंत्रता संग्राम के बाद कर्नाटक में हुए पहले किसान आन्दोलन को मार्गदर्शन एवं नेतृत्व देने राममनोहर लोहिया 14 जून 1951 को कोगोडू (कर्नाटक) आये थे। यहां उन्हें गिरफ्तार कर बंगलुरु जेल में निरुद्ध किया गया। कर्नाटक की आम जनता विशेषकर किसानों के लिए गिरफ्तारी देने वाले डा. राममनोहर लोहिया प्रथम राष्ट्रीय नेता व राष्ट्रनायक थे। कर्नाटक के लोकमानस को महात्मा गांधी के बांद वैचारिक रूप से सर्वाधिक झंकृत, आप्लावित और प्रभावित करने वाले जननेता लोहियाजी ही हैं। कर्नाटक में उनके बहुस्पर्शी और बहुआयामी सम्बन्धों पर काफी कम लिखा-पढ़ा गया है। लोहिया के प्रभाव को केवल राजनीतिक व दलीय अथवा चुनावी राजनीति की दृष्टि से देखना उचित नहीं होगा। लोहिया के प्रभाव के विस्तार का फलक राजनीति से कई गुना अधिक व्यापक और गहन है। लोहिया ने कर्नाटक के जनान्दोलनों एवं जन-विमर्श को देश की मुख्य धारा से जोड़ा। उनका कर्नाटक आवागमन आजादी के पूर्व से रहा है। लोहिया के कुछ समय तक सचिव की भूमिका निभाने वाले के०एस० कारंत से लोहिया की मुलाकात 1946 में बेलगांव में हुई थी, जहां लोहिया गोवा की आजादी के आन्दोलन के संदर्भ में आये थे। श्री कारंत के अनुसार कर्नाटक में जितने प्रतिबद्ध कार्यकर्ता, समर्थक व सहयोगी लोहिया को मिले, किसी और को नहीं मिले। बेलगांव में लोहिया ने 1946 में गोवा को स्वतंत्र कराने के लिए एक सत्याग्रही- भर्ती शिविर लगाया था जिसमें अनेक कर्नाटक के युवाओं ने सहभाग किया और लोहिया-अभिप्रेरित आजाद दस्ते के सदस्य बने। बेलगांव को बेलगावी व बेलगाम भी कहते हैं जो कर्नाटक के सबसे बड़़े जिलों में एक है और महाराष्ट्र तथा गोवा की सीमा पर स्थित है। लोहिया को गोवा में शासन कर रही तत्कालीन पुर्तगाली सरकार ने गोवा में प्रतिबन्धित कर दिया था इसलिए लोहिया ने बेलगॉंव में शिविर किया और गोवा की आजादी की लडाई में तत्कालीन मैसूर (वर्तमान में कर्नाटक) के योद्धाओं को जुड़ने का अवसर दिया। लोहिया ने बेलगावी के ऐतिहासिक महत्व को द्विगुणित किया जो वस्तुतः कर्नाटक का गौरवशाली इतिहास है। इससे पहले बेलगांव (कर्नाटक) को ऐतिहासिक सम्मान महात्मा गांधी ने 1924 में अधिवेशन अध्यक्षता करके दिलाया था। बेलगांव अधिवेशन (कांग्रेस) एकमात्र अधिवेशन है जिसकी अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की थी। बेलगांव की ऐतिहासिकता को पहले गांधी, फिर उनकी ही परम्परा के वाहक एवं शिष्य लोहिया ने बढ़ाया । लोहिया के कर्नाटक में सबसे अभिन्न सहयोगी व अनुयायी गोपाल गौड़ा शांतिवेरी को माना जाता है। वे तीन बार मैसूर प्रांतीय (कर्नाटक) विधान सभा के सदस्य रहे। पहली बार 1952 में वे डोसानागर से निर्वाचित हुए। गोपाल गौडा को कर्नाटक में समाजवाद का अग्रदूत और कर्नाटक का लोहिया कहा जाता है। गोपाल गौडा ने लोहिया की भॉति बयालिस की क्रांति दौरान गिरफ्तारी देने की बजाय भूमिगत रहते हुए ब्रिटानिया हुकूमत से मोर्चा लिया और लड़ते हुए गिरप्तार हुए। उन पर टैलीग्राफ की लाइनें काटने और अंग्रेज सरकार के विरुद्ध जनता को बगावत करने के लिए भड़काने का आरोप था। वे लोहिया से इतने प्रभावित थे कि अपने बेटे का नाम ही राममनोहर रख दिया था। उनके कई शिष्य कालांतर कर्नाटक मुख्यमंत्री हुए जिसमें जयदेवप्पा हलप्पा पटेल, सारेकोप्पा बंगारप्पा, सोमनहल्ली मल्लैया कृष्णा सदृश नाम उल्लेखनीय हैं। ये सभी भले ही कांग्रेस या अन्य दल के प्रतिनिधि के रूप में मुख्यमंत्री बने हों किन्तु सभी की भावभूमि व राजनीतिक पृष्ठभूमि समाजवादी रही है। लोहिया-लोकनायक जयप्रकाश की विरासत कर्नाटक में काफी सशक्त है। आइए. चुनावी राजनीति से इतर किसान आन्दोलनों पर दृष्टिपात करते हैं। कर्नाटक के किसान आन्दोलनों के इतिहास में कागोडू (शिमोगा) किसान आन्दोलन प्रारम्भिक मील का पत्थर है जिसने न केवल कर्नाटक अपितु पूरे देश को हिला कर रख दिया था। इसी आन्दोलन से काश्तकारी एवं कृषि सुधारों की नींव पड़ी। यह इस आन्दोलन को दिशा देने के लिए डा० लोहिया 14 जून 1951 को कागोडू पहुॅचे जबकि उन्हें जर्मनी में आयोजित वैश्विक समाजवाटी सम्मेलन को सम्बोधित करने जाना था। हिन्द किसान पंचायत के अध्यक्ष लोहिया में कर्नाटक के किसानों ने अभूतपूर्व विश्वास दर्शाया। लोहिया ने कागोडू किसान आन्दोलन के स्वर को न केवल भारत में अपितु फ्रॅंकर्फुट सोशलिस्ट कन्वेंशन जैसे वैश्विक मंचों से भी बुलन्द किया । अस्सी के दशक में गठित कर्नाटक राज्य रैयत संघ (केआरआरएस) के सतत आन्दोलनों के पीछे भी लोहिया की वैचारिकी है। केआरएसएस के सर्वमान्य नेता नंजुंदा स्वामी स्वयं को समाजवादी आन्दोलन से जोड़ते रहे । प्रख्यात् समाजवादी चिन्तक किशन पटनायक के अनुसार नंजुंदा स्वामी ने लोहिया और गोपाल गौड़ा के जाने के बाद समाजवाद के परचम् को सामाजिक आन्दोलनों के माध्यम से लहराते रहे। सबको पता है कि कर्नाटक में जो भूमि सुधार हुए वे लोहियावादियों की देन है, जिसे देवराज ने आगे बढाया। कर्नाटक में दलित-आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में बी० कृष्णप्पा और देवानर महादेव का नाम प्रमुख है। दोनों लोहिया की समाजवादी युवजन सभा कें सक्रिय व प्रतिबद्ध सदस्य रहे हैं। तीसरे महत्वपूर्ण दलित बद्धिजीवी व नेता गोविंदौया भी समाजवादी युवजन सभा से जुड़े हुए थे। लोहिया के विचार- प्रवाह के कारण ही केआरएसएस ने साम्प्रदायिकता और जाति-प्रथा के विरुद्ध लड़ाई लड़ी और इससे जुड़े नेताओं व कार्यकर्ताओं ने लोहिया की सोच के अनुसार विजातीय विवाह समारोहों का आयोजन किया। कर्नाटक के महान दलित चिन्तक महादेव, लोहिया के इस कथन के समर्थक थे कि महात्मा गांधी ईसा मसीह जितना महान हो सकते थे यदि वे अपने इस बयान पर कायम रहते कि देश का बंटवारा उनकी (गांधी जी) मृत-शरीर पर होगा। सिद्धलिंगैय्या का लोहिया के प्रति आकर्षण सर्वविदित है। लोहिया का प्रभाव उनकी पार्टी की चुनावी प्रदर्शनी से कई गुणा अधिक है। कर्नाटक में राज अथवा जननेता राममनोहर लोहिया से चिन्तक व विचारक लोहिया का प्रभाव और भीज्यादा है। कर्नाटक के तीन सबसे अधिक पढे जाने' वाले साहित्यकार उडुपि राजगोपालाचारी अनंतमूर्ति, पल्या लंकेश और कुप्पाली पुट्टप्पा पूर्णचन्द्र तेजस्वी, तीनों समाजवादी और लोहिया से पूर्णतया प्रभावित थे। अनंतमूर्ति को कन्नड़़ का शेक्सपियर कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अनंतमूर्ति बाकायदा लोहिया का व्याख्यान कराते थे। वे लोहिया में राम और कृष्ण की सम्मिलित छवि देखते थे। उनके अनुसार लोहिया का राम की भाँति मर्यादित व्यक्तित्व था किन्तु राममनोहर में कृष्ण की तरह एक सृजनकारी कलाकार का उत्साहित मन भी था। खुद अनंतमूर्ति ने एक लेख में लिखा है कि लोहिया के विचार उनके लेखन के लिए ही नहीं बल्कि उनकी कन्नड साहित्य की समझ में भी काफी उपयोगी रहे। खुद अनंतमूर्ति ने 2 मार्च 2010 को चंदन गौड़ा से कहा कि लोहिया ने मुझको एक क्रिटिकल इन साइडर बनने का मार्ग प्रशस्त किया। ज्ञानपीठ और पदमविभूषण से सम्मानित अनंतमूर्ति' के उपन्यास 'संस्कार' पर फिल्म बनाने का निर्देश प्रख्यात फिल्म निर्माता पट्टाभिराम रेड्डी को लोहिया ने ही दिया था जिसमें गिरीश कर्नाड के साथ स्नेहलता रेडडी ने भी अभिनय किया है। स्नेहलता रेड्डी लोहिया के नारी विमर्श से प्रभावित थीं औरआपातकाल का प्रतिकार करते हुए कारावास की यातना भोगा था। संस्कार फिल्म के प्रारम्भ में हिन्दी में राममनोहर लोहिया चित्र" लिखकर आता है। यह फिल्म कन्नड सिनेमा की शाहकार (सिग्नेचर) फिल्म है। साहित्य अकादमी और राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष रहे अनंतमूर्ति लोहिया के ही प्रभाव में आकर धार्मिक अधंविश्वासों के घोर विरोधी और इंग्लैंड में पढे-लिखे होने के बावजूद कन्नड़ भाषा के समर्थक हो गये। वे लोहिया के हिन्दी अभियान के भी हिस्सा थे। उन्हें लोहिया ने कन्नड़ को मजबूत करने का निर्देश दिया था । फिल्मकार और लेखक पल्या लंकेश ने भी लोहिया को आदर्शवादी नायक माना है। उन्होंने लोहिया की पुस्तक "जाति-प्रथा" के कन्नड़ 'संस्करण का प्राक्कलन लिखा है। उनके द्वारा प्रकाशित लंकेश पत्रिकाओं में समाजवादी दृष्टिकोण प्रतिबिम्बित है। उन्होंने अपने दो समविचारी साथियों तेजस्वी और के० रामदास के साथ मिलकर नई समाजवादी पार्टी प्रगतिरंगा वेदिके बनाई और जन जागरण किया। पल्लवी, अनुरूपा, खांडविडे को मांसाविडे को, एलिडांलो वोडावारू जैसी फिल्मों से उन्होंने कन्नड, साहित्य, , सिनेमा और समाजवाद को मजब्रत किया है। कन्नड साहित्य को अपनी विशिष्ट शैली से जनप्रिय बनाने वाले कृप्पाली पुट्टप्पा पूर्णचन्द्र तेजस्वी के अन्सार "लोहिया विचारों ने न केवल मेरे जीवन' शैली' और सोच को परिवर्तित किया बल्कि उसने मेरी समझ व मेरे व्यक्त करने की प्रक्रिया को भी परिष्कृत किया। एक तरह से मेरे पूरे व्यक्तित्व को ही बदल डाला है। वे लोहिया को एक मात्र मीमांसकार मानते थे। पेरियार, ई०वी० रामास्वामी नायकर, बाबा साहब आम्बेडकर और स्वामी विवेकान्द पर काफी कुछ लिखने-पढने वाले तेजस्वी सैद्दांतिक रूप से लोहिया को पूर्ण मानते थे। तेजस्वी प्रसिद्ध कन्नड कवि लेखक कुष्पल्ली वेंकटप्पा पुट्टप्पा उपाख्य कुवेम्पु के पुत्र हैं जिन्हें लोहिया ने 1963 में दिल्ली में आयोजित "अंग्रेजी हटाओ सम्मेलन" की अध्यक्षता केलिए आमंत्रित किया था, लोहिया ने राजधानी दिल्ली में कन्नड़ साहित्यकार अध्यक्षता कराकर कन्नड़ व कर्नाटक साहित्य का कद बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कर्नाटक में उन्हें राष्ट्रकवि' समझा जाता है। कर्नाटक' केा राज्य गान "जय भारत जननीय तन्जते'" उन्होंने ही लिखा है। लोहिया के प्रभाव के कारण उन्होंने कन्नड़ भाषा को माध्यम बनाकर शिक्षा की तब शुरूआत की, जब वे मैसूर विश्वविद्यालय के कुलपति थे। वे 1956 से 1960 तंक मैसूर विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। लोहिया की मृत्यु के=पशचात् तेजस्वी और नंजुंदा' स्वामी ने लोहिया नामक पुस्तक ' प्रकाशित किया जिसे कन्नड़ समाज लाल किताब की संज्ञा देता है। इस पुस्तक का प्राक्कथन राष्ट्रकवि कोयम्पू ने लिखा है।

लोहिया को कन्नड भाषा व वर्तनी का गहरा ज्ञान था। दिसम्बर 1959 में प्रकाशित अपने एक लेख में लोहिया ने लिखा है कि " वैसे तो कन्नड अक्षर नागरी से बेहद अलग प्रतीत होते हैं, पर जिस कागज पर वे लिखे जाते हैं उसे सिर्फ 90 अंश के समकोण पर घुमा दीजिए। इससे काल और दूरी का खेल कुछ-कुछ समझ में आने लगेगा। कन्नड और नागरी के कई अक्षर उनकी लिखावट के कोण के कारण विभिन्न प्रतीत होते हैं। कन्नड के अक्षर को ऐसा घुमाइये कि उनका बायां हिस्सा ऊपर आ जाये और उसके ऊपर का हिस्सा दायें आ जाए तो उनके कई अक्षर नागरी जैसे अक्षर बन जायेंगे। दोनों में "ढ़" अक्षर समान दिखते हैं।" लोहिया नर-नारी के मध्य आत्यात्मिक बराबरी के रूप में अक्का महादेवी का नाम आदर्श नाम के रूप में गिनाते थे जो कर्नाटक में 400-500 वर्ष पहले पैदा हुई थीं। वे काफी विदुषी महिला थी और पूरे इलाके में शैव लिंगायत धर्म का प्रचार का प्रसार करती हुई नग्न साधु की तरह घूमा करती थीं । लोहिया ने जन के जनवरी-फरवरी अंक की संपादकीय में महादेवी अक्क के प्रति श्रद्धाभाव व्यक्त करते हुए पीड़ा व्यक्त की है कि महादेवी का नाम देश में उतना नहीं है जितना होना चाहिए । लोहिया को केवल मैसूर के प्राचीन इतिहास अपितु. आधुनिक इतिहास की भी समग्र जानकारी थी। वे अक्सर लोकसभा समेत कई सार्वजनिक भाषणों में विधुरस्वथ में अफसरों द्वारा गोली चलाने पर 1938 में बैठाई गयी जांच समिति का उल्लेख करते थे जिसका विरोध सरदार पटेल और आचार्य जे०बी० कृपलानी ने किया था । लोहिया के संसद में जाने के बाद कर्नाटक से जुड़े कई महत्वपूर्ण जनहित के प्रश्न गंभीरतापूर्वक उठे और सरकार को जवाब देना पड़ा । मुझे यह कहने में जरा भी हिचक नहीं देश के महान नेताओं में राममनोहर लोहिया एकमात्र ऐसे सांसद रहे हैं जिन्होंने कर्नाटक का न होते हुए भी कर्नाटक से जुड़े सवालों को सर्वाधिक उठाया या उठाने में सहभागी रहे।, यह कर्नाटक के प्रति उनके असीम स्नेह को दर्शाता है। फरवरी 15, 1966 को लोहिया ने कर्नाटक में आये अकाल की समस्या को उठाई। इसी दिन उन्होंने अतारांकित प्रश्न (1945) के माध्यम से पूछा कि हेस्साराघाट में भारतीय कृषि गवेषणा परिषद की बागवानी संस्था को धनराशि कब तक आवंटित की जायेगी ? 16 फरवरी 1966 को उन्होंने लोकसभा मैं तकनीकी कालेजों में हो रहे छात्रों के शोषण के सवाल को उठाया जिस पर तत्कालीन शिक्षा मंत्री मोहम्मद अली करीम चागला को शोषण रोकने के लिए निर्देश देना पडा। 24 फरवरी 1966 को लोहिया ने मैसूर राज्य के रेशम उद्योग से जुड़े मामले को लोकसभा पटल पर रखा । 3 मार्च 1966 को लोहिया ने मंगलौर में जल संरक्षण योजना में हो रही देरी के प्रश्न को उठाते हुए सरकार को घेरा। लोहिया ने मैसूर सरकार द्वारा अक्टूबर 1962 में भू-राजस्व पर आरोपित अधिशुल्क का प्रतिकार 16 अगस्त 1966 को लोकसभा में किया जिसका कर्नाटक के किसान विरोध कर रहे थे। लोहिया कर्नाटक के किसानों से जुड़ी पानी की समस्या को भी लोकसभा में उठाया।

ये दृष्टान्त केवल उदाहरण के लिए हैं । संसद की प्राचीरें एवं प्रोसेडिंग्स लोहिया के कर्नाटक के प्रति लगाव की साक्षी हैं। ऐसे अनेक अवसर रेखांकित किये जा सकते हैं जब लोहिया ने कर्नाटक के दुख-दर्द को संसद में उठाया । 7 नवम्बर 1966 को लखनऊ में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में लोहिया ने मैसूर में हो रहे किसानों के शोषण की बात की और निर्णायक संघर्ष के लिए कार्यकर्ताओं को तैयार रहने के लिए कहा। उल्लेख करना समीचीन होगा कि सन् 1956 में मैसूर में सिंगप्पा ने लोहिया के अंग्रेजी हटाओ अभियान से प्रेरणा लेकर कन्नड युवजन सभा का गठन किया था जिसका लक्ष्य कन्नड को सार्वजनिक जीवन में बढ़ावादेना था। कन्नड युवजन सभा ' के कई सत्याग्रही बाद समाजवादी युवजन सभा से सम्बद्ध हो गये। जयदेवप्पा हलप्पा पटेल भी इसी युवजन सभा से जुडे थे जिन्होंने लोहिया को आदर्श और लोहिया के विमर्श को मानते हए लोकसभा में पहली बार कन्नड़ में बोला था। बाद में वे कर्नाटक के मुख्यमंत्री हुए। जब तमिलनाडु के कुछ नेताओं ने अपने दुराग्रहों के कारण लोहिया के विरुद्ध हिन्दी थोपने का आरोप लगाया तो कन्नड के बद्धिजीवी और नेता लोहिया के साथ खड़े हए। उन्होंने कहा कि लोहिया सभी भारतीय व प्रांतीय भाषाओं के सच्चे हितैषी हैं। कर्नाटक सरकार की कन्नड और संस्कृति विभाग ने राममनोहर लोहिया की जीवनी, उनके लेखों, भाषणों व पुस्तकों को संकलित कर 6 खण्डों में प्रकाशित किया है जिसके आमुख में लिखा है कि लोहिया का कर्नाटक के साहित्य और राजनीति की दुनिया पर "गहरा प्रभाव" पडा है। अजीत सेत, कोनादुर लिंगप्पा, के मनजप्पा, बी० कृष्णप्पा, बापू् हेदरशेट्टी जैसे अनेकानेक प्रभावशाली बौद्धिक- राजनीतिक- सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यकर्ता लोहिया विचार पथ की देन हैं । कर्नाटक समाज को प्रभावित करने वाले हर लोकसंघर्ष और जन-विमर्श को लोहिया से नईं भाषा. ऊँचाई, शैली व शब्द मिले ढ। लोहिया के उल्लेख के बिना कर्नाटक का जाज्वल्यमान इतिहास अधूरा है। 

मेरी इस कर्नाटक यात्रा का पवित्र ध्येय कर्नाटक से सम्बन्धित लोहिया और समाजवाद के अंतर्संबंधों को और अधिक सशक्त करते हुए हिन्दी तथा कन्नड़ के आपसी प्रेम-भाव को बढ़ावा देना है। इस संदर्भ में कई संगोष्ठियों एवं कर्नाटक के सामाजिक-राजनीतिक- वैचारिक-सांस्कतिक संगठनों के 'प्रतिनिधियों एवं कार्यकर्ताओं से संवाद प्रस्तावित है और मैं यथासंभव ' यथाशक्ति समाजवादी मूल्यों को सशक्त करने के लिए संकल्पबद्ध हूँ ।

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