भारत की स्वतंत्रता संग्राम में आर्य समाज की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही:- स्वामी रामदेव

भारत की स्वतंत्रता संग्राम में आर्य समाज की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही:- स्वामी रामदेव

Nov 2, 2025 - 00:31
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भारत की स्वतंत्रता संग्राम में आर्य समाज की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही:- स्वामी रामदेव
  • आर्य समाज की 150वीं वर्षगांठ पर स्वामी ब्रह्मविहारिदास और स्वामी रामदेव ने प्रेरित किया वैश्विक सम्मेलन

गोरखपुर(हिन्द भास्कर):- आर्य समाज की 150वीं वर्षगांठ के वैश्विक समारोह में बीएपीएस स्वामी ब्रह्मविहारिदास और स्वामी रामदेव ने भावनात्मक और प्रेरणादायक उद्बोधन दिए। दोनों ने अनुयायियों से आह्वान किया कि वे अपने जीवन में सत्य, एकता और करुणा जैसे सनातन वैदिक मूल्यों को आत्मसात करें।

स्वामी ब्रह्मविहारिदास ने पवित्र वैदिक मंत्रों से अपना वक्तव्य आरंभ करते हुए अपने गुरु स्वामी महाराज और गुरु हरि मोहन स्वामी महाराज के प्रति श्रद्धा व्यक्त की तथा उपस्थित विशिष्ट अतिथियों और चालीस से अधिक देशों से आए प्रतिनिधियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह समारोह केवल 150 वर्षों की उपलब्धियों का उत्सव नहीं, बल्कि मानवता, धर्मनिष्ठा और जीवन के अमर मूल्यों को जीने का अवसर है।

उन्होंने कहा कि वैदिक ज्ञान शाश्वत और सार्वभौमिक है, और यह मनुष्यों को नकारात्मकता से मुक्त कर मित्रता, साहस और आत्मबोध की दिशा दिखाता है। अबू धाबी मंदिर के निर्माण का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि श्रद्धा और निरंतर प्रयास से असंभव भी संभव हो सकता है। ‘ऋषि परंपरा और स्वर्णिम भारत के निर्माण में उसका योगदान’ विषय पर विशेष सम्मेलन के दौरान यह चर्चा की गई कि किस प्रकार प्राचीन ऋषियों की दृष्टि आज भी भारत के नैतिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का मार्गदर्शन कर रही है।

अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका से आए आर्य प्रतिनिधियों ने बताया कि आर्य समाज की संस्थाएं विश्व भर में किस प्रकार जीवन को सकारात्मक रूप से बदलने का कार्य कर रही हैं। आज विश्व के विभिन्न महाद्वीपों में आर्य समाज की 15,000 से अधिक संस्थाएं सक्रिय हैं जो महर्षि दयानंद सरस्वती के सत्य, शिक्षा और आध्यात्मिक समता के संदेश को निरंतर आगे बढ़ा रही हैं।

एक अंतरराष्ट्रीय वक्ता ने कहा, “जब विश्व विभाजन और निराशा के द्वार पर खड़ा है, तब आर्य समाज एक प्रकाशस्तंभ की तरह मानवता के पथ को वेदों की ज्योति से आलोकित कर रहा है।” उन्होंने कहा कि आर्य समाज भौगोलिक या धार्मिक सीमाओं से परे एक सामाजिक सुधार आंदोलन है जो नारी गरिमा, समानता और अज्ञान के उन्मूलन के लिए समर्पित है। उनके अनुसार, वेद कोई प्राचीन ग्रंथ भर नहीं, बल्कि मानवता का जीवंत नैतिक संविधान हैं।

अपने प्रेरक संबोधन में स्वामी रामदेव ने महर्षि दयानंद सरस्वती को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें वह योगी और दृष्टा कहा जिन्होंने वैदिक ज्ञान को पुनर्जीवित किया और राष्ट्रीय चेतना को जगाया। उन्होंने भावपूर्ण काव्य पंक्तियों का उद्धरण देते हुए दयानंद के अटूट साहस, त्याग और राष्ट्र की आध्यात्मिक पहचान को पुनर्स्थापित करने में उनकी भूमिका का स्मरण किया। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद ने गुरुकुल प्रणाली और सामाजिक सुधारों के माध्यम से नारी सशक्तिकरण के लिए जो योगदान दिया, वह युगों तक याद किया जाएगा।

स्वामी रामदेव ने यह भी कहा कि भारत की स्वतंत्रता संग्राम में आर्य समाज की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने इसे राष्ट्र के आध्यात्मिक पुनर्जागरण की रीढ़ बताया। उन्होंने याद दिलाया कि औपनिवेशिक काल में नष्टप्राय हो चुकी गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को स्वामी श्रद्धानंद, स्वामी दर्शानंद जैसे संतों और सुधारकों के अथक प्रयासों से पुनर्जीवित किया गया। वैदिक और आधुनिक शिक्षा के संगम के इसी दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप आज भारतीय शिक्षा बोर्ड जैसे उपक्रम प्रारंभ हुए हैं, जिनमें वेद, दर्शन और राष्ट्रीय गौरव को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है।

उन्होंने कहा कि सच्ची स्वतंत्रता केवल राजनीति तक सीमित नहीं, बल्कि शिक्षा, संस्कृति और विचारों की स्वतंत्रता भी उतनी ही आवश्यक है। उन्होंने आर्य समाज परिवार से आह्वान किया कि वे महर्षि दयानंद के उस स्वप्न को साकार करने के लिए अपना जीवन समर्पित करें जिसमें भारत ज्ञान, विवेक और आत्मनिर्भरता के शिखर पर पहुँच सके। “हम ऋषियों की परंपरा के ज्ञानप्रचारक हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने हर कर्म में सत्य, साहस और देवत्व को जिएं,” उन्होंने कहा।

गुरुकुल की छात्राओं ने इस अवसर पर एक भावनात्मक नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया जिसमें नशे की लत जैसी सामाजिक बुराइयों का विरोध करते हुए युवाओं को सही दिशा में प्रेरित करने का संदेश दिया गया। अंतरराष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन के तीसरे दिन के अंत में उपस्थित जनों ने यह संकल्प लिया कि वे आर्य समाज के उस मिशन को आगे बढ़ाएंगे जो सत्य, समानता और वेदों के शाश्वत प्रकाश से मानवता का पथ प्रशस्त करता है।

कार्यक्रम में देश के समसामयिक सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियों पर विमर्श भी हुआ और यह चर्चा की गई कि आर्य समाज किस तरह राष्ट्र के पुनर्निर्माण में योगदान दे सकता है। यह भव्य आयोजन 2 नवंबर 2025 को संपन्न होगा। अब तक दो लाख से अधिक श्रद्धालु इस आयोजन में सहभागी हो चुके हैं।

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