नाग पंचमी पर विशेष : डॉ अशोक पाण्डेय

Aug 9, 2024 - 12:44
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नाग पंचमी पर विशेष : डॉ अशोक पाण्डेय

नाग पंचमी

हमारी संस्कृति में देव स्वरूप हैं - नाग

डॉ. अशोक पाण्डेय

उत्सवप्रियता भारतीय जीवन की प्रमुख विशेषता है। इसीलिए यहां पूरे वर्ष भर कोई न कोई पर्व त्योहार मनाया ही जाता रहता है। इन पर्वों का ही प्रभाव है कि दुनिया में कैसी भी स्थिति हो भारतीय लोकजीवन सदैव प्रेम, उल्लास और मंगल से परिपूर्ण ही रहता है।

आज सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि है। इस दिन मनाया जाने वाला त्यौहार नागों को समर्पित है। वेद और पुराणों में नागों का उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रु से माना गया है। नागों का मूल स्थान पाताल लोक प्रसिद्ध है। संस्कृत कथा साहित्य, विशेष रुप से कथासरित्सागर में नाग लोक और वहां के निवासियों की कथाएं वर्णित हैं। गरुड़ पुराण, भविष्य पुराण, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, भावप्रकाश आदि ग्रंथों में नाग संबंधी अनेक विषयों का उल्लेख मिलता है। 

पुराणों में यक्ष, किन्नर और गंधर्व के वर्णन के साथ-साथ नागों का भी वर्णन है। स्वयं भगवान विष्णु की शैया की शोभा नागराज शेषनाग बढ़ाते हैं। भगवान शिव और गणेश जी के अलंकरण में भी नागों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इतना ही नहीं योग सिद्धि के लिए जो कुंडलिनी शक्ति जागृत की जाती है, उनको भी सर्पिणी कहा जाता है।

पुराणों के अनुसार भगवान सूर्य के रथ में द्वादश नागों का उल्लेख है। यह बारह नाग प्रत्येक महीने में उनके रथ के वाहक बनते हैं। नाग को भारतीय संस्कृति में देव स्वरूप में स्वीकार किया गया है। 

   

भारतीय संस्कृति में सायं- प्रातः भगवत् स्मरण के साथ- साथ अनंत और वासुकि पवित्र नागों के नाम का स्मरण किया जाता है। जिनसे नाग विष और भय से रक्षा होती है। देवी भागवत में प्रमुख नागों का नित्य स्मरण किया गया है। हमारे ऋषि और मुनियों ने, नागों की उपासना में अनेक व्रत और पूजन का विधान किया है।

आज का दिन श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी नागों को अत्यंत आनंद देने वाली है। 

     'नागानामानन्द करी'

   

नाग पूजा में इन्हें गाय के दूध से स्नान कराने का विधान है। गाय के दूध से स्नान करने से नागों को शीतलता प्राप्त होती है। वहीं भक्तों को सर्पभय से मुक्ति भी होती है, ऐसी मान्यता है।

 

नाग पूजा में पृथ्वी पर नागों का चित्रांकन किया जाता है। स्वर्ण, रजत, काठ या मिट्टी से नाग बना कर फूल, गंध ,धूप, दीप और विभिन्न प्रकार के नैवेद्यों से नागों का पूजन होता है। और इस मंत्र का उच्चारण कर नागों को प्रणाम किया जाता है।

सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले। 

ये च हेलिमरीचिस्था ये अंतरे दिवि संस्थिता।।

ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः।

ये च वापी तडागेषु तेषु सर्वेषु वै नमः।।

  

अर्थात जो नाग पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग, सूर्य की किरणों, सरोवर, वापी, कूप और तालाब आदि में निवास करते हैं। सभी हम पर प्रसन्न हों। हम उन्हें बार-बार नमस्कार करते हैं।

  

धर्मप्राण देश भारत, चिंतन के साथ प्राणी मात्र में आत्मा और परमात्मा के दर्शन कराता है, तथा एकता का अनुभव कराता है।

समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्।

    

यह दृष्टि ही जीव मात्र, मनुष्य, पशु ,पक्षी, कीट, पतंग सभी में ईश्वर का दर्शन कराती है। जीवों के प्रति आत्मीयता और दया भाव को विकसित करती है।

       

अतः आज हमारे लिए पूज्य और संरक्षणीय हैं नाग। ये हमारी कृषि संपदा की कृषि विनाशक जीवों से रक्षा करते हैं । पर्यावरण रक्षा तथा वन संपदा में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है । नाग पंचमी का पर्व नागों के साथ जीवों के प्रति सम्मान उनके संवर्धन और संरक्षण की प्रेरणा देता है। इसीलिए यह पर्व प्राचीन समय और परम्परा के अनुरूप आज भी प्रासंगिक है ।

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