आठ दिवसीय नाट्य समारोह के चौथे दिन नाटक विप्लव आहुति का हुआ मंचन
दर्पण गोरखपुर द्वारा आयोजित संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से संस्कार भारती गोरक्ष प्रान्त एवं भारतेंदु नाट्य अकादमी,लखनऊ उत्तर प्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में पद्मश्री स्मृतिशेष बाबा योगेंद्र जी एवं स्मृतिशेष अमीरचंद जी को समर्पित "नेपथ्य के नायक " पर आधारित 29 सितम्बर से 05 अक्टूबर तक चलने वाले आठ दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव अंतर्गत पांचवी प्रस्तुति का शुभारंभ महायोगी बाबा गम्भीर नाथ प्रेक्षागृह में मुख्य अतिथि चारु चौधरी जी ( उपाध्यक्ष उ0 प्र0 महिला आयोग ) जी द्वारा बाबा योगेंद्र जी एवं अमीरचंद जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ, साथ मे पूर्व मेयर अंजू चौधरी,अविनाश जी , गिरीश जी अध्यक्ष ललित कला अकादमीआदि उपस्थित रहे ।
स्वागत उद्बोधन में संस्था के अध्यक्ष रविशंकर खरे ने कार्यक्रम में उपस्थित दर्शको के अभिवादन के साथ गिरीश जी अध्यक्ष ललित कला अकादमी को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।एवं मुख्य अतिथि श्रीमती चारु चौधरी को रीना जी ने पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया।
अविनाश जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज आजादी के उन क्रन्तिकारियो को जो देश के लिए जीवन की आहुति दी आज उन नायकों को नेपथ्य के नायकों के नाम से जाना जाता है इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या क्या होगा, आज स्थिति बदली है आज उन सारे नायकों को एक समान सम्मान मिल रहा है यह दर्पण द्वारा आयोजित कार्यक्रम इसका सीधा उदाहरण है।
आचार्य चतुरसेन शास्त्री द्वारा लिखित एवं टीकम जोशी द्वारा निर्देशित तथा मध्य प्रदेश नाट्य विद्यय भोपाल द्वारा मंचित नाटक "विप्लव आहुति " अंग्रेजो द्वारा जन जन के शोषण के दर्द को बयां कर गयी।
नाटक की कथावस्तु गुमनाम क्रांतिकारी मास्टर अमीरचंद, भाई बालमुकुंद और बसन्त कुमार बिस्वास द्वारा देश के आज़ादी के लिए किए गए प्रयासों और संघर्षों के इर्द गिर्द घूमती है कहानी 1912 के दिल्ली षड्यंत्र केस और लाहौर लॉरेन्स गार्डन बम हमले के आसपास की है। नाटक में रास बिहारी बोस नाटक की भूमिका केंद्र में रहे ,उन्ही के माध्यम से इस नाटक की कहानी संप्रेषित होती है। वह क्रांतिकारी जिनको इतिहास के पन्नो से हमेशा के लिए गायब कर दिया गया ,जिनको कभी उतना याद नही किया गया जितना देश के बाकी सैनानियों को किया जाता है,जबकि इनके प्रयासों से ही आज़ादी का पहला और सशक्त मार्ग निर्धारित हुआ था इसी के बाद कई अन्य क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता के लिए कदम बढ़ाया था, यह नाटक ऐसे दबे सत्य को उजागर कराता है। नाटक में ग़दर मूवमेंट और उनके पर्चे का ,जो कि उस समय अंग्रेजों के लिए बड़ी वारदात हुआ करती थी, उसका भी बड़ा उल्लेख किया गया । नाटक में फाँसी होने के बाद भी नाटक का अंत दुखांत नही बल्कि एक आशा पैदा करता है जिससे देश के अन्य युवा देश की स्वतंत्रता की तरफ अपना मार्ग निर्धारित करते है ।
रियलस्टिक शैली ,कुशल प्रकाश सज्जा एवं संगीत सयोजन में निबद्ध यह प्रस्तुति स्वतंत्रता आंदोलन के छिपे असली हीरो से परिचय करा गया
प्रस्तुत नाटक में मंच एवं मंच से परे निम्नलिखित कलाकारों जैसे
रास बिहारी बोस – बिशाल बरुआ,अंग्रेज़ बॉस- • कनिष्क द्विवेदी,मास्टर अमीर चांद- अभय आनंद बडोनी,भाई बालमुकुंद- प्रदीप तिवारी,
बसंत कुमार बिस्वास - रोहित खिलवानी,मतिदास-अभिषेक मंडोरिया,रक्खी-शारोन मेरी मसीह,सुलतान चन्द्र - गौतम सारासवत,पुलिस ऑफिसर - अर्पित ठाकुर,संजना, हिमाद्रि व्यास,मंच परे –स्क्रिप्ट संयोजन - रंग प्रयोगशाला कॉस्ट्यूम -शारोन मेरी मशीह, प्रदीप तिवारी, अभय आनन्द बडोनी, बिशाल बरूआ,प्रॉपर्टी-रूप सज्जा-संजना, अभिषेक मंडोरिया,मंच सज्जा-गौतम सारास्वत,कनिष्क दिवेदी
गीत लेखन रंग प्रयोगशाला संगीत परिकल्पना - अंजना पूरी,गिटार और हारमोनियम - सागर शुक्ला,ढोलक वादक-रवि राव,प्रकाश परिकल्पना एवम संचालन-राम सिंह पटेल,मंच प्रबंधक-अर्पित ठाकुर,रोहित खिलवानी आदि के अभिनव संयोजन और प्रस्तुति ने पूरे कहानी की जीवंत कर दिया।
संस्था के अध्यक्ष रविशंकर खरे ने सभी कलाकारों को प्रशस्ति पत्र तथा उनके माध्यम से निर्देशक टीकम जोशी जी को अंग वस्त्र एवं स्मृति चिन्ह भेंट देकर उनके प्रति सम्मान व्यक्त किया। मंच संचालन मानवेन्द्र त्रिपाठी ने किया ।
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