आइए जानें क्या होता है "जलझूलनी महोत्सव"
आइए जानें क्या होता है "जलझूलनी महोत्सव"

हिन्द भास्कर:- भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनकर्ता माना जाता है उनके प्रसन्न रहने से देवता और पितर दोनों प्रसन्न रहते हैं और व्यक्ति को जीवन में धन-धान्य, यश एवं ख्याति की कमी नहीं होती। एक ऐसा महा महोत्सव जिसके मनाने से भगवान विष्णु अपने भक्तों पर प्रसन्न होते हैं और शायद यह महा महोत्सव एक गुप्त महोत्सव के रूप में जाना जाता है जिससे सभी सनातन धर्मावलंबी परिचित नहीं है।
इस लेख के माध्यम से भगवान को प्रसन्न करने के लिए एक उत्सव का वर्णन किया जा रहा है जिस उत्सव को जलझूलनी महा महोत्सव के नाम से जानते हैं। यह जलझूलनी महा महोत्सव भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी के दिन मनाया जाता है जिसे पदमा एकादशी या विजया एकादशी कहते हैं। एकादशी भगवान विष्णु को बहुत ही प्रिय है और भाद्रपद मास की एकादशी व्रत करने वाले को उसके जीवन में अन्न धन आदि की प्रचुरता रहती है।
इसी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को सायंकाल से लेकर अगले दिन प्रातःकाल तक मनाया जाने वाला एक उत्सव भगवान को समर्पित किया जाता है जिसे जलझूलनी के नाम से जाना जाता है। भविष्योत्तर पुराण में भगवान के इस महा महोत्सव का वर्णन है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी के दिन सायंकालीन भगवान विष्णु को विमान या उनके पालने में विराजित कर गीत गाते हुए, तरह-तरह के वाद्य यंत्रों को बजाते हुए, नर्तन करते हुए, भगवान के नाम का संकीर्तन करते हुए और भगवान विष्णु की जय ऐसा बोलते हुए एवं जय आदि का घोष करते हुए भगवान विष्णु को विमान में विराजित करके किसी जल क्षेत्र, जलाशय या पवित्र नदी के पास उनको ले जाते हैं।
उस पवित्र जलाशय और नदी में भगवान विष्णु को इस दिन विधिपूर्वक स्नान कराते हैं और थोड़े देर के लिए उन्हें जल में छोड़ते हैं और वहां से पुनः भगवान के साथ घर को वापस आ जाते हैं। भगवान को विधिपूर्वक वस्त्र आदि से आच्छादित कर संध्या के समय विभिन्न उपचारों से उनकी महा पूजा करते हैं। विशेष रूप से भगवान विष्णु को तुलसी प्रिय है। यदि उनके हजारों नाम से तुलसीदल का अर्पण किया जाए तो इस पूजा में विशेष फल प्राप्त होता है जिससे सभी देवता एवं उनके साथ आपके पितर भी प्रसन्न होते हैं।
भगवान विष्णु का विधिवत उपचार से पूजन करने के बाद भव्य रूप से उनकी आरती करनी चाहिए और रात्रि में भगवान को दक्षिण कटी के तरफ शयन कराने के बाद जागरण करना चाहिए। इस दिन भगवान के नाम के संकीर्तन करते हुए रात्रि में जागरण का विशेष महत्व है। दूसरे दिन यानी भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष के द्वादशी के दिन प्रातः कालीन ही पुनः भगवान का पूजन एवं उत्तर पूजन करके इस मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए। " वासुदेव जगन्नाथ प्राप्तेयम द्वादशी तव।
पार्श्वेंन परिवर्तस्व सुखम स्वपिही माधव।" ऐसा प्रार्थना करके भगवान को पुनः भोग प्रसाद आदि अर्पित करके और आरती करके प्रसाद ग्रहण कर पारण करना चाहिए। इस प्रकार इस जलझूलनी महा महोत्सव को संपादित करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा जीवन पर्यंत रहती है। विशेष करके राजपूतों द्वारा यह पूजन और यह महा महोत्सव मनाया जाता है परंतु इसे सभी वैष्णव जन मना सकते हैं और अपना भाव भगवान विष्णु के प्रति समर्पित कर सकते हैं। भगवान विष्णु सबका कल्याण करें, इसी कामना के साथ!
द्वारा: आचार्य डॉ0 धीरेन्द्र मनीषी। निदेशक: काशिका ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र, वाराणसी। मो0: 9450209581/ 8840966024.
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