सच में संत है वसंत

Feb 2, 2025 - 09:06
Feb 2, 2025 - 09:48
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सच में संत है वसंत

पुरातन का त्याग और नई संभावनाओं को जन्म देने जैसा स्वभाव है कामनाओं के अधिष्ठाता कामदेव के सखा ऋतुओं के सिरमौर वसंत का।

 आते ही वातावरण में खुशबू तथा जनमानस में उमंग भर देता है वसंत। आखिर संत की अवधारणा भी तो यही है कि वह जिस पथ से गुजरे उधर सदाचार की, सत्य की और शालीनता की खुशबू फैल जाए। वसंत मौसमों में छिपे असंत-भाव को दूर भगाता है। मौसमों में असंत का भाव भी मन में छिपे दुर्भावों से कम नहीं होता। वसंत के आने के पहले शीत ऋतु की भयावहता से जनमानस कम्पित हो जाता है। धरती की गति धीमी हो जाती है। महा तेजस्वी सूर्य भी घुटने टेकने के लिए मज़बूर हो जाता है। यह केवल शीत-काल की ही बात नहीं, जरा ग्रीष्म ऋतु पर भी नज़र घुमाई जाए जब जेठ की दुपहरिया में जीवन-गाड़ी का भी पहिया थम जाता है। इसी तरह की भयानक स्थिति वर्षा ऋतु में अतिवृष्टि तथा नदियों के विकराल रूप के वक्त दिखाई पड़ता है। गिरते-पड़ते मकान और लुढ़कते-ढहते पर्वतों की भयावहता से चीख-चीत्कार सुनाई पड़ता है। ऋतुओं के इन रूपों को आतंकवादी कहा जाए तो क्या उचित नहीं है? 

    इस सबके विपरीत वसंत सन्तों जैसा पीतांबर ही धारण नहीं करता बल्कि आचरण भी सन्तों जैसा ही है। पतझड़ के सूत्र कालातीत का ज्ञान कराते है। जिंदगी में उपयोगिता खत्म हुई तो पेड़ों से कालातीत होकर गिरते पत्ते खुद से ही परित्याग का संदेश देते हैं। हिंदी के विद्वान समालोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल वसंत की व्याख्या फूलों के गुच्छा के रुप में करते हैं। बाग-बगीचों में खिलते फूल संतों के मधुर वचनों जैसे तो लगते ही हैं, साथ ही संगीत का वसंत राग संतों की जुबां से जपते हरिनाम से कम नहीं लगते।

    साहित्य में और धर्म में पूरे वर्ष के 6 ऋतुओं में वसंत के साथ जोड़ी मिलाई गई है तो वह शरद ऋतु से मिलाई गई है । अध्यात्म में वासन्तिक नवरात्र और शारदीय नवरात्र को विशेष सिंहासन दिया गया है। इसमें वासन्तिक नवरात्र को पिता तथा शारदीय नवरात्र को माता की पदवी दी गई है। वासन्तिक नवरात्र में मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के जन्म की महिमा है तो शारदीय नवरात्र में श्रीराम द्वारा माता दुर्गा की आराधना कर रावण-वध की गाथा का है। रावण का अर्थ ही है रुदन (रोने) से। जिंदगी में जो भाव-विचार तथा आचरण रोने के लिए मजबूर करे, वही रावण है। रोने की स्थिति सिर्फ मानवीय ही स्तर पर नहीं बल्कि प्रकृति पर आघात से भी है। सनातन के संदेश 'वसुधैव कुटुम्बकं' की गहराइयों पर विचार करने से स्पष्ट तो होता ही है कि पेड़-पौधे, नदी-ताल-तलैया, धरती-आकाश, पर्वत-झरने सब कुटुंब जैसे ही है। कुटुंब का आशय परिवार से ज्यादा व्यापक है, इसीलिए कुटुंब की जगह परिवार शब्द का प्रयोग नहीं किया गया।

   दो माह तक वसंत के इस रूप के प्रतीकों को देखा जाए तो मौसम में न ग्रीष्म जैसी धूप है और न पूस जैसी शीतलहर। मौसम सोने के 24 कैरेट जैसा है तो इसका भी संदेश है कि अहंकार की ज्यादा कड़ी धूप और आलस्य की कपकपी से वह मुक्त हो जीवन। ज्यादातर यही समस्या जीवन में न जाने कहाँ से लुक-छिप के आ जाती है कि सफलता मिल गई तो अहंकार और नहीं मिली तो निराशा की लहर में आलस्य तथा अति कीमती जीवन को दो कौड़ी का बना देने की हालत हो जाती है। मन के भावों को भी कुटुंब की स्थिति में लाने के लिए बुद्धि, विवेक, मन, कर्म आदि में तालमेल जीवन को वसंत बना ही देता है।

   वसंत का जन्म माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को तो हो जाता है लेकिन इसका यौवन चैत्र-वैशाख माह ही है। आचार्य शुक्ल के अनुसार श्रीपंचमी से हरिशयनी एकादशी तक वसंत राग के गायन से प्रकृति भी झूमने लगती है।

सलिल पाण्डेय, मिर्जापुर

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