अंत:करण के रूपक हैं गणपति

Sep 6, 2024 - 21:38
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अंत:करण के रूपक हैं गणपति

गणेश चतुर्थी विशेष

डॉ. अशोक पाण्डेय

 गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थ जंबू फल चारु भक्षणम् ।

 उमा सुतम् शोक विनाश कारकम् नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ।।

     

पौराणिक आख्यानों के अनुसार विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश जी का जन्म , भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को दोपहर में हुआ था। भारतीय संस्कृति में गणेश जी को प्रथम पूज्य देवता का स्थान दिया गया है । इस बार गणेश चतुर्थी 7 सितंबर 2024 दिन शनिवार को पड़ रही है। जो सायं काल 5:37 बजे तक है। 

   

इस दिन यदि व्रत करते हैं तो सायंकाल भोजन करना चाहिए । यथासंभव पूजन दोपहर में ही कर लेनी चाहिए । क्योंकि सभी पूजन और व्रत इत्यादि में दोपहर की तिथि ली जाती है।

 

'पूजा व्रतेषु सर्वेषु मध्याह्नव्यापिनी तिथिः'।

प्रातः काल स्नानादि के पश्चात् अपने सामर्थ्य के अनुसार गणेश जी की प्रतिमा के समक्ष, उनके लंबोदरस्वरूप का ध्यान कर संकल्प लें। 

'गं गणपतये नमः' से पूजन कर आरती करें । मूर्ति पर सिंदूर चढ़ायें, मोदक तथा दूर्वा इनकी पूजा में विशेष रूप से सम्मिलित किए जाते हैं । गणेश जी के दस नाम मंत्रों का उच्चारण करते हुए दो -दो दूर्वा प्रतिमा पर चढ़ायें। अंत में एक दूर्वा और। इस तरह इक्कीस दूर्वा समर्पित करें।

   

इसी प्रकार इक्कीस लड्डू का भोग भी चढ़ाया जाता है।

          

गणेश जी के व्रत से मनोवांछित कार्य सिद्ध होते हैं। भारत के अनेक प्रदेशों में गणेश चतुर्थी मनाते हैं । विशेष रूप से महाराष्ट्र में गणेश पूजा बहुत ही धूम-धाम से मनाई जाती है। यह मुख्य पर्व के रूप में प्रतिष्ठित है ।

          

इनकी जन्मगाथा जीवात्मा के दार्शनिक रूप का शुद्ध रूप से रूपक है। भगवान गणेश भगवती पार्वती के गर्भ में कभी नहीं रहे। इनका वास अग्नि और गंगा के गर्भ में था। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि जीवात्मा और पंचतत्व के बीच अन्योन्याश्रित संबंध है। प्रकृति से संबंधित होने पर जीवात्मा किस भांति अपने स्वरूप में ईश्वर का अंश बना रहता है, वास्तव में यही गणपति की जन्मकथा का गूढ़ रहस्य है। भगवान गणपति अंतःकरण के रूपक हैं। यह प्रकृति का शुद्धतम रूप होते हुए भी पार्थिव और जड़ हैं। 

      

बुद्धि के अधिष्ठाता श्री गणेश पैदा होकर सर्वप्रथम यह कार्य करते हैं, कि भगवान शिव को माता पार्वती के पास उस समय जाने से रोकते हैं, जब माता पार्वती स्नान कर रही होती हैं। कारण बताने पर माता की आज्ञा शिरोधार्य मानकर पिता से युद्ध करते हैं ।यह एक दार्शनिक और आध्यात्मिक प्रकरण है, क्योंकि बुद्धि भी प्रारंभ में केवल और केवल पार्थिव वैभव के पीछे भागती है, और परमार्थ से विमुख होकर उसका विरोध करती है। ऐसी स्थूल पार्थिव बुद्धि का भगवान शिव सिर काट लेते हैं। तत्पश्चात् उन्हें ईश्वर के अनुग्रह एवं आशीर्वाद के कारण दूसरा सिर लगाया जाता है। 

   

यहां तर्क है, परमार्थिक बुद्धि या समाहित बुद्धि का। जिसे संसार में पूज्य माना जाता है । गणेश जी के एक सिर का जाना, और दूसरे सिर का आना शुद्ध रूप से पार्थिव बुद्धि का नष्ट होना और परमार्थिक बुद्धि के आने का एक सुंदर रूपक है।

       

क्योंकि परमार्थिक बुद्धि ही जगत पूज्य बनाता है ।शिव ब्रह्मांड स्वरूप में प्रकृति हैं , और पार्वती उनकी शक्ति। प्रकृति और शक्ति के द्वारा उत्पन्न गणेश जी बौद्धिकता के प्रतीक हैं।  

   

जब सर्वप्रथम किसी भी कार्य करने की संकल्पना व्यक्ति के मस्तिष्क में उपजती है, और जब तक इस सोच में बौद्धिकता का समावेश नहीं होता है ,तब तक कार्य सफल नहीं होता है।

  

इसीलिए सर्वप्रथम किसी भी कार्य के प्रारंभ में हम गणपति गणेश की आराधना करते हैं । आख्यानों के अनुसार कौन सा देवता प्रथम पूज्य हो , जब इसका निर्णय होने लगा । उस समय यह तय हुआ कि, जो पृथ्वी की प्रदक्षिणा सबसे पहले करेगा, वही प्रथम पूज्य माना जाएगा । गणेश जी मूषक पर सवार थे और उन्होंने माता-पिता की परिक्रमा कर ली। यानि माता-पिता को ही उन्होंने संपूर्ण लोक माना। भगवान शिव यह देखकर प्रसन्न हो गए और सर्वप्रथम गणेश जी घोषित हुए। अतः यह बुद्धि कौशल देखकर भगवान ब्रह्मा जी ने उन्हें प्रथम पूज्य बनाया।

      

अतः प्रत्येक कार्य में भारतीय लोग उनकी सबसे पहले पूजा करते हैं। चूंकि भगवान शिव के गणों के अधिपति भगवान गणेश हैं, इसलिए उन्हें गणाधिपति कहा जाता है । अतः उनसे यह प्रार्थना की जाती है कि, समस्त कार्य निर्विघ्न पूर्वक संपन्न हों। गणेश जी साक्षात् ओंकार के स्वरूप हैं, उनका ध्यान उनके नाम का जप, उनकी आराधना, और व्रत स्मरण शक्ति को तीव्र करती है। 

          

तभी तो आदि ग्रंथ महाभारत के लेखक के रूप में भगवान व्यास के साथ उनकी प्रतिष्ठा है।

  

हिंदुओं के घर में चाहे वह विश्व के किसी भी स्थान में रह रहे हों और चाहे जैसी पूजा या क्रिया कर्म हो सबसे पहले गणेश जी का आह्वान और उनका पूजन किया जाता है। शुभ कार्यों में गणेश जी की स्तुति का अत्यंत महत्व है। ये विघ्न विनाशक हैं। इनका मुख हाथी का है। पेट लंबा तथा शेष शरीर मनुष्य के समान है। इन्हें प्रसन्न करने के लिए इनके सहस्त्रनाम के साथ अर्चन किया जाता है। इसे गणपति सहस्त्रार्चन कहा जाता है। इसके साथ ही गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भी अत्यंत फलदाई माना जाता है । 

शुभम् भूयात्

डॉ. ए. के. पाण्डेय

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