मांगों को लेकर अधिवक्ताओं ने निकाला जुलूस किया प्रदर्शन

हिन्द भास्कर ब्यूरो
सोनभद्र।
अधिवक्ताओं ने शुक्रवार को तहसील परिसर में जुलूस निकालते हुए कलेक्ट पर पहुंचकर अपनी विभिन्न मांग पत्र देते हुए बुलंद की आवाज किया विरोध प्रदर्शन वही सोनभद बार एसोसिएशन अध्यक्ष अरुण कुमार मिश्रा ने बताया कि शासन बनाये रखने कि लिये निर्भीक एवं स्वतंत्र न्याय के तंत्र का होना अति आवश्यक है। अधिवक्ता न्याय के स्व का पहिया माना जाता है उसे Officer of the Court का दर्जा प्राप्त होता है। बाबा साहब अम्बेडकर ने सवैधानिक उपचारों को संविधान की आत्मा माना था। इन उपचारों की परिकल्पना अधिवक्ताओं के बगैर संभव नहीं है। नीति-निर्देशक तत्वों में यह राज्य का कर्तव्य है कि वह व्यवस्थपिका को न्यायपालिका से अलग रखने के लिये प्रतिबंद्ध रहेगा। ऐसा लगता है कि अधिवक्ता अधिनियम में संशोधन संविधान के इस आधारभूत संरचना पर हमला करने की नियत से लाये गये हैं।
ऐसे समय में जब केन्द्रीय विधि मंत्री, अधिवक्ताओं के लिये मेडिक्लेम/जीवन बीमा प्रदान करने की घोषणा कर चुके हैं व पूरे देश का अधिवक्ता समाज एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट की राह जोह रहा था, जिसका प्रारुप तैयार करने बार कौंसिल आफ उत्तर प्रदेश लगभग 6 माह पूर्व सरकार को प्रषित किया जा चुका है। इन संशोधनों में इस बिन्दु का वर्णन तक न होने से अधिवक्ताओं में मायूसी की लहर छा गयी है। साथ ही इन संशोधनों के स्वरुप, लक्षण व नियत पर प्रश्नचिन्ह स्वाभाविक रुप से उठ खड़े हुए हैं। राजस्थान के विधान मण्डल द्वारा पारित एडवोकेट प्राटेक्शन एक्ट को राज्यपाल ने राष्ट्रपति की सहमति न प्रदान हाने के कारण रोक दिया गया है, जिससे पता चलता है कि वर्तमान सरकार एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट नहीं करना चाहती है।
इस संशोधनों द्वारा अधिवक्तओं की सर्वोच्च संस्था भारतीय विधिज्ञ परिषद को केन्द्र सरकार द्वारा बाध्यकारी निर्देश देने के प्राविधान से धारा 49 (बी) से पूरी संस्था की स्वायत्तता व स्वतंत्रता खतरे में आ गयी है। इतिहास साक्षी है कि अधिवक्ता समाज लोकतन्त्र का अनन्य व सजग प्रहरी है, चाहे देश का स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन हो या आपातकाल की विभीषिका अधिवक्ताओं ने ही लोकतन्त्र को अक्षुण्ण बनाये रखा है। शासन की नियत या निदेशन जो भी हो, वह सर्वोच्च संस्था को पंगु बनाने के लिये एक खतरनाक शुरुआत है।
सर्वोच्च संस्था के निर्वाचित स्वरुप का जानबूझकर शरण किया गया है। भारतीय विधिज्ञ परिषद में 5 नामित सदस्यों का प्राविधान संस्था में अनावश्यक व किसी साजिश की ओर संकेत करता है। द्वारा परिषद के सभी सदस्य व पदाधिकारियों पर एक 5 सदस्यीय कमेटी का शिकंजा रखा गया है। इन 5 सदस्यों की कमेटी में परिषद का सिर्फ एक ही सदस्य है और इसमें बहुमत न्यायाधीशों का है।। यह कमेटी उपरोक्त के व्यवसायिक या अन्य कदाचार (Professional Misxonduct) पर बाध्यकारी निर्णय देगा, जो दिखने में दमनकारी प्रतीत होता है। यह संशोधन स्वतंत्र संस्था पर कुखराघात है, इससे आम अधिवक्ताओं के हित की रक्षा कर पाना परिषद के लिये असंभव है।
राज्य के अधिवक्ता का मेरुदण्ड, प्रादेशिक विधिज्ञ वरिषद के अस्तित्व पर भी तलवार लटका दी गयी है। परिषदों द्वारा अपना दायित्व निर्वहन न करने की स्थिति में चाहे वह किसी भी कारण का क्यों न हो, उनको भंग करने की शक्ति पहली बार भारतीय विधिज्ञ परिषद को दिया गया है।
परिषद के संदस्यों की जगह उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति की अध्यक्षता में कमेटी को सौंपे जाने का प्राविधान किया गया है। स्पष्ट है कि स्वायत्तशासी राष्ट्रीय व प्रादेशिक स्तर पर स्वायत्तशासी संस्था को लोकतान्त्रिक अस्तित्व एक झटके में खत्म करने का प्राविधान इन संशोधन में है। इस भयावह काले कानून के विरोध में पूरे देश का अधिवक्ता लामबंद हो गया है। यह संशोधन आम जनता की न्याय की आस को भी धूल धूसरित कर देगा। न्यायहित व जनहित में हमारी मांगे निम्नवत
1. अधिवक्ता व उनके परिवार के लिये एडवोकेट एक्ट का प्राविधान किया जाय।
2. परिषदों के निर्वाचित सदस्यों के अतिरिक्त कोई समाहित न किये जाये व उनके लोकतान्तिक स्वरुप को यथावत रखा जाय।
3. परिषदों के सदस्यों या अस्तित्व पर सुझाये गये संशोधन को तुन्त समाप्त किया जाये।
4. पूरे प्रदेश के अधिवक्ता विशेषकर उत्तर प्रदेश बार कौंसिल मांग करती है कि प्रदेश के अधिवक्ताओं को 10 लाख का मेडिक्लेम व किसी अधिवक्ता की मृत्यु होने पर 10 लाख की बीमा राशि प्रदान की जाये।
5. यह कि पंजीयन के समय प्रत्येक अधिवक्ता से लिये जा रहे 500/- के स्टाम्प की बिकी से प्राप्त धनराशि का 02 प्रतिशत अधिवक्ता कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च किया जाये, जैसा कि केरल सरकार द्वारा है।
6. बियम बनाने का अधिकार पूर्व में जो एडवोकेट्स एक्ट में प्राविधनित था, उसको उसी प्रकार रखा जाये। केन्द्र सरकार द्वारा रेगुलेशन बनाने की जो बातें कही गयी हैं, उसे तुरन्त समाप्त किया जाये। साथ ही किसी प्रकार के संशोधन की आवश्यकता न होने के कारण हम अधिवक्तागण एडवोकेट अमेंडमेंट बिल-2025 के पूरे संशोधन को निरस्त करते हैं पूरे प्रदेश के अधिवक्ता मांग करते हैं कि एडवोकेट अमेंडमेंड बेल-2025 को तुरन्त वापस लिया जाये, अन्यया अधिवक्तगण पूरे देश में इस लड़ाई को लड़ने की रणनीति बनाने पर बाध्य होंगे।
अधिवक्ता संशोधन विधेयक -2025 के विरोध में अधिवक्ता सुरक्षा कानून लागु करने की मांग को लेकर सोनभद्र बार एसोसिएशन अध्यक्ष अरुण कुमार मिश्र एड० की अध्यक्षता महामंत्री अखिलेश कुमार पाण्डेय एड० के संचालन में काला फीता बाधकर न्यायालय परिसर में चकमण कर हुये अधिवक्ता संशोधन विधेयक-2025 का विरोध करते हुये वापस लेने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया गया, चकमण के बाद उपस्थित अधिवक्ता राष्ट्रपति को सम्बोधित ज्ञापन देने जिला मुख्यालय पहुंचकर अधिवक्ता संशोधन विधेयक-2025 को विरोध करते हुये अपना ज्ञापन अपर जिलाधिकारी को दिया जिसमें सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय, शेराज अख्तर खॉ, शारदा प्रसाद र्मोय एड०, उमेश कुमार मिश्र, दिनेश दत्त पाठक, सत्यदेव पाण्डेय, राजीव सिंह गौतम, विनोद कुमार शुक्ल, प्रदीप सिंह, संजय श्रीवास्तव, मुनिराज साह, धर्मेन्द्र द्विवेदी, अतुल प्रताप सिंह, संजय कुमार पाण्डेय, आशुतोष द्विवेदी, आशिष शुक्ला, अजित दुबे, आशिष पाल, सुरज वर्मा, अनुज अवस्थी, राहुल जैन, अखिलेश मिश्र, उमेश मिश्र, जयनाथ गिरि, पुष्पा तिग्गा, गीता गौर, शुशिला वर्मा, आकृति निर्भया, आदि अधिवक्ता उपस्थित रहे।
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