मूल्यों की राजनीति और राष्ट्र प्रथम के अगुआ थे अटलजी - धर्मपाल सिंह
अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मशताब्दी पर श्रद्धांजलि विशेष लेख
लोकसभा की शीतकालीन सत्र में विपक्ष का विद्रूप दृश्य सबने देखा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को इस अवसर पर राजनीति के श्लाका पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की
13 दिन की सरकार याद दिलाए।
उन्होंने कहा, बाजार तब भी लगता था, खरीद-फरोख्त तब भी होती थी, लेकिन, अटलजी ने सौदा नहीं किया। क्योंकि, वे संविधान और लोकतांत्रिक मर्यादाओं के प्रति समर्पित थे। मूल्यों की राजनीति व राष्ट्र प्रथम के लक्ष्य का यह सर्वोच्च भाव ही तो था, जिसकी भाव भूमि पर अटलजी ने शंखनाद किया,
‘सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए।’
1998 लालकिला के प्राचीर से प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्र के नाम प्रथम संबोधन में उन्होंने स्पष्ट कहा, ‘मैनें जीवन में कभी
सत्ता के लालच में सिद्धांतों के साथ सौदा नहीं
किया है, और न मैं भविष्य में करूंगा। सत्ता का सहवास और विपक्ष का वनवास मेरे लिए एक जैसा है।’ राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे विषयों पर आज जब विपक्ष ‘सबूत’ मांगने जैसा प्रहसन करता है, अटलजी ने चार दशक से अधिक समय तक विपक्ष में रहते हुए मर्यादा के नए प्रतिमान गढ़े।
वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान का युद्ध का समय हो या पीवी नरसिम्हा राव के समय उपजा संकट हो, अटल ने साफ कहा कि
देश की कीमत पर राजनीति नहीं हो सकती।
राष्ट्रहित को चोट पहुंचाने वाले किसी भी कार्य के लिए इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा।
हम उन सौभाग्यशाली पीढ़ियों में हैं
जिन्हें राष्ट्रपुरुष अटल जी का सानिध्य भी मिला और मार्गदर्शन भी।
अटल जी भौतिक रूप से हमारे मध्य नहीं है, लेकिन, उनके आदर्श, भाजपा के लिए तय किए गए उनके मानक हमारे लिए गीता की तरह हैं। पल-प्रतिपल अटलजी का जीवन, उनकी राजनीतिक विशिष्टता, संगठनात्मक सर्वोच्चता पल-प्रतिपल हमे राह दिखाती है। सफलता व विजय के क्षणों में अटलजी की विनम्रता ध्यान में रहती है,
‘छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता..।’
परिणाम अपेक्षित नहीं होते तो भी अटलजी गूंजते हैं, ‘हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा…।’
राजनीति व राष्ट्रनीति दोनों के ही वह सबसे बड़े भविष्य दृष्टा थे। इसीलिए, भाजपा की नींव रखते हुए उन्होंने शंखनाद किया था,
‘अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा..।’
अटलजी ने 80 के दशक में भाजपा की नींव रखते हुए देश की जमीनी स्थिति एवं समस्याओं को निकट से महसूस किया था। उन्होंने कहा, ‘आजादी के बाद के इन वर्षों के दौरान देश में गरीबी, भूख, बेकारी, शहर और गांव का अंतर, गरीब-अमीर के बीच की खाई बढ़ रही है। इस दरार को पाटने, देश के लाखों-करोड़ों नौजवानों का भविष्य सुधारने, एक मजबूत अर्थव्यवस्था की नींव रखने की ओर कोई कदम नहीं बढ़ाया गया।‘ इसलिए, अटलजी ने जब भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार का नेतृत्व संभाला तो उन्होंने अंत्योदय से सर्वोदय तक की यात्रा प्रारंभ की। यह उनकी समन्वय, समानता और सर्वस्वीकार्यता ही तो थी कि 24 राजनीतिक दलों के साथ देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार पांच वर्ष तक सफलतापूर्वक चलाई। अटलजी की इन नीतियों का प्रतिबिंब मोदी सरकार की योजनाओं में भी स्पष्ट है।
आदि शंकराचार्य ने इस देश को सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं धार्मिक एकता के सूत्र में बांधा था। अटलजी ने प्रशासक के रूप में देश में आधारभूत और ढांचागत एकता का सूत्रपात किया। पूरे देश को विश्वस्तरीय सड़कों से जोड़ने की
‘स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना’
स्वतंत्र भारत की सबसे महत्वपूर्ण परियोजनाओं में एक थी। अटलजी सुविधाओं और संसाधनों में गांव-शहर की समता के पक्षधर थे। नीति निर्धारण में भी यह प्रतिबिंबित हुआ। वह जानते थे कि गांव तक विकास की रफ्तार पहुंचाने के लिए पगडंडियों की नहीं सड़कों की जरूरत है। इसलिए, अटलजी ने देश के हर गांव को सड़क से जोड़ने का महाभियान
‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ प्रारंभ की।
भारत की टेलिकॉम क्रांति के जनक भी तो वही थे जिसने घर-घर को दूरसंचार सुविधाओं और सस्ती फोन कॉल से जोड़ा। जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान का उनका मंत्र भारत की वैज्ञानिक क्षमताओं की पूरे विश्व में उद् घोषणा कर रहा है।
उन्होंने साफ कहा, राष्ट्रीयता के संदर्भ में भारतीय और हिंदू पर्यायवाची शब्द हैं। भारत एक प्राचीन राष्ट्र है। हमें किसी नए राष्ट्र का निर्माण नहीं करना है, अपितु इस प्राचीन राष्ट्र को सुदृढ़, समृद्ध और आधुनिक रूप देना है। अटलजी की विदेश नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा, प्रशासन, जनकल्याणकारी योजनाओं में 21वीं सदी की इन आकांक्षाओं की झलक थी, जिसे आज भाजपा नीति सरकारें
‘विरासत भी, विकास भी’
के संकल्प को आगे बढ़ा रही हैं। अटलजी जानते थे कि 21वीं सदी की मजबत नींव समावेशी शिक्षा पर ही रखी जा सकेगी। इसलिए, लाल किले के प्राचीर से ही प्राथमिक स्कूलों में नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराने की घोषणा की थी। सर्व शिक्षा अभियान की उनकी जलाई ज्योति से देश के हर कोने तक शिक्षा का प्रकाश पहुंच रहा है।
भारत रत्न अटलजी ने अनावश्यक चुनावों के बोझ की ओर ध्यान आकृष्ट किया था। उन्होंने देश को संबोधित करते हुए कहा कि क्या बार-बार चुनाव होना देश के लिए अच्छी बात है? क्या इन चुनावों पर होने वाले भारी खर्च का बोझ बार-बार उठाना देशहित में है। अटलजी की इस आकांक्षा का मान रखते हुए मोदी जी ने ‘एक देश, एक चुनाव’ के संकल्प की दिशा में कदम उठाया है।
अटलजी ने कहा था,
‘इक्कीसवीं सदी हमारा दरवाजा खटखटा रही है।
यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह सदी स्त्रियों की सदी होगी।’ देश के विकास में आधी दुनिया की पूरी भागीदारी के लिए ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ अटलजी की दिखाई राहों का ही प्रतिफल है।
मां भारती के सच्चे पुत्र व वैश्विक नायक अटलजी के सपनों के भारत का निर्माण ही
उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।
धर्मपाल सिंह
(लेखक यूपी भाजपा के प्रदेश संगठन मंत्री हैं)
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