अन्त:करण के रूपक हैं गणपति

गणेश चतुर्थी पर विशेष

Aug 26, 2025 - 20:38
Aug 26, 2025 - 20:48
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अन्त:करण के रूपक हैं गणपति

गणेश चतुर्थी विशेष

अंतःकरण के रूपक हैं - गणपति

डा. ए. के.पाण्डेय

गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थ जंबू फल चारु भक्षणम् ।

उमा सुतम् शोक विनाश कारकम् नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ।।

गणेश जन्म कथा

पौराणिक आख्यानों के अनुसार विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश जी का जन्म, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को दोपहर में हुआ था।

भारतीय संस्कृति में गणेश जी को प्रथम पूज्य देवता का स्थान दिया गया है।

इस बार गणेश चतुर्थी 27 अगस्त, बुधवार को पड़ रही है, जो सायंकाल लगभग 3:44 बजे तक रहेगी।

पूजन का महत्व और विधान

 इस दिन यदि व्रत करते हैं तो सायंकाल भोजन करना चाहिए।

 यथासंभव पूजन दोपहर में ही करना चाहिए, क्योंकि सभी पूजन और व्रत इत्यादि में दोपहर की तिथि ली जाती है।

 शास्त्रवचन -

“पूजा व्रतेषु सर्वेषु मध्याह्नव्यापिनी तिथिः”

 प्रातःकाल स्नानादि के पश्चात् अपने सामर्थ्य के अनुसार गणेश जी की प्रतिमा के समक्ष, उनके लंबोदर स्वरूप का ध्यान कर संकल्प लें।

‘गं गणपतये नमः’ से पूजन कर आरती करें।

मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएँ

मोदक एवं दूर्वा अवश्य अर्पित करें

गणेश जी के दस नाम मंत्रों का उच्चारण करते हुए दो-दो दूर्वा चढ़ाएँ

अंत में एक दूर्वा और अर्पित कर कुल मिलाकर २१ दूर्वा चढ़ाना अत्यंत शुभ माना गया है

इसी प्रकार २१ लड्डुओं का भोग भी अर्पित करें।

व्रत और आस्था

गणेश जी के व्रत से मनोवांछित कार्य सिद्ध होते हैं।

भारत के अनेक प्रदेशों में गणेश चतुर्थी मनाई जाती है, परंतु महाराष्ट्र में इसे विशेष रूप से भव्य रूप से मनाया जाता है। वहाँ यह केवल पूजा नहीं बल्कि जनआस्था का महापर्व है।

 दार्शनिक दृष्टि

गणेश जी की जन्मकथा जीवात्मा और पंचतत्व के संबंध का अद्भुत रूपक है।

भगवान गणेश भगवती पार्वती के गर्भ में नहीं, बल्कि अग्नि और गंगा के गर्भ से प्रकट हुए।

यह प्रतीक है कि जीवात्मा और प्रकृति के पंचतत्व परस्पर जुड़े हुए हैं।

गणपति अंतःकरण के रूपक हैं — प्रकृति का शुद्धतम रूप होते हुए भी वे पार्थिव और जड़ के प्रतीक हैं।

बुद्धि और परमार्थ का संदेश

श्री गणेश बुद्धि के अधिष्ठाता हैं।

उनकी कथा हमें यह सिखाती है—

प्रारंभिक बुद्धि (पार्थिव बुद्धि) केवल भौतिक वैभव की ओर दौड़ती है और परमार्थ का विरोध करती है।

शिव द्वारा उसका सिर काटा जाना, स्थूल बुद्धि का अंत है।

नए सिर का मिलना, परमार्थिक बुद्धि का उदय है, जो जगत में पूज्य है।

प्रथम पूज्य का रहस्य

देवताओं के बीच यह विवाद उठा कि प्रथम पूज्य कौन होगा।

सभी देवता पृथ्वी की परिक्रमा करने निकले।

परंतु गणेश जी ने अपने माता-पिता की परिक्रमा कर यह सिद्ध कर दिया कि माता-पिता ही संपूर्ण लोक हैं।

इस बुद्धि-कौशल से प्रसन्न होकर भगवान शिव और ब्रह्मा ने उन्हें प्रथम पूज्य घोषित किया।

गणेश जी और ज्ञान परंपरा

गणेश जी को गणाधिपति कहा जाता है, क्योंकि वे भगवान शिव के गणों के अधिपति हैं।

उनका ध्यान, जप और व्रत स्मरण शक्ति को तीव्र करते हैं।

यही कारण है कि वे महाभारत के लेखक के रूप में भी पूजित हुए।

 उपासना का महत्त्व

गणेश जी विघ्न विनाशक हैं।

शुभ कार्यों की शुरुआत उनसे करने पर कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं।

गणपति सहस्त्रनाम से अर्चन और गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ अत्यंत फलदायी है।

----- शुभम् भवतु -----

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