अखण्ड सौभाग्य का व्रत - हरितालिका
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को सौभाग्यवती स्त्रियां अपने अखंड सौभाग्य की कामना के लिए, बहुत ही श्रद्धा और मनोयोग से हरितालिका यानि तीज का व्रत रहती हैं। यह व्रत उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और झारखंड आदि राज्यों में बड़ी संख्या में महिलाएं करती हैं।
भारत के अनेक अन्य प्रांतों भी में अलग - अलग नाम से यह मनाया जाता है। हिमाचल प्रदेश में इसे चिड़ियों का व्रत कहते हैं। इसमें मिट्टी के खिलौने बनाते हैं, और जौ की हरियाली उगाते हैं। जिसे अगले दिन जल में प्रवाहित करते हैं। दक्षिण भारत में इसे गौरी हब्बा के नाम से मनाते हैं।
यह व्रत बहुत ही कठिन होता है, क्योंकि इसमें अन्न फलाहार और यहां तक कि जल का भी निषेध है। अधिकांश महिलाएं चौबीस घंटे तक जल भी ग्रहण नहीं करती हैं। व्रत के दिन प्रातःकाल सूर्योदय के पूर्व ब्रह्म बेला में अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार महिलाएं चूड़ा दही या अन्य मिष्ठान्न खाती हैं। फिर व्रत सूर्योदय के साथ ही प्रारंभ हो जाता है।
सायंकाल से स्नानादि के पश्चात् महिलाएं हरितालिका व्रत की कथा सुनती हैं। विधि विधान पूर्वक शिव पार्वती और गणेश जी के विग्रह अथवा उपलब्धता के अनुसार चित्र की पूजा करती है। इस व्रत में रात्रि जागरण करने का विधान है। पूरी रात भजन कीर्तन करते हैं।
मंत्र -
गौरी मे प्रीयतां नित्यं अघनाशाय मंगला।
सौभाग्यायास्तु ललिता भवानी सर्वसिद्धये।।
प्रातः काल स्नान करने के पश्चात् गौरी जी यानि पार्वती जी से सुहाग लेकर, यथाशक्ति अन्न, सुहाग का सामान, वस्त्र और फल इत्यादि दान करती हैं।
इसके पश्चात घर में बड़ों से आशीर्वाद लेकर व्रत का पारण करते हैं।
इस बारे में कथा है कि गिरि नंदिनी उमा ने भगवान शिव को, पति के रूप में प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। जिसके कारण उनका एक नाम अपर्णा भी पड़ा था।
इस व्रत में पार्वती जी के त्याग, संयम, धैर्य और एकनिष्ठ होकर पतिव्रत धर्म के पालन करने पर प्रकाश डाला गया है। इस कथा से स्त्रियों का मनोबल ऊंचा उठता है।
कथा है कि पार्वती जी ने वर्षों तक निराहार रहकर कठोर साधना की। उन्होंने पति के रुप में शिव की पाने के लिए पर्वत की कंदरा के भीतर शिवलिंग बनाकर कठोर उपासना किया । शिव जी प्रसन्न हुए और पार्वती जी को पत्नी के रूप में वरण करने का वचन देकर अंतर्ध्यान हो गए।
इस प्रकार देवी पार्वती के अनुराग की विजय हुई। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि और हस्त नक्षत्र में यह आराधना सफल हुई थी, इसीलिए इस तिथि को यह व्रत किया जाता है।
महिलाएं अपने पति के दीर्घायु के लिए , तथा कुमारी कन्या अपने लिए मनोनुकूल पति की प्राप्ति के लिए तीज का यह व्रत करती हैं। जो हमारी परंपरा में है। 'आलिभिर्हरिता यस्मात् तस्मात् सा हरितालिका' सखियों द्वारा पार्वती जी हरी गयी थीं । इसलिए इस व्रत का नाम हरितालिका पड़ा।
यह उपवास निराहार, निराजल होता है। इसलिए व्रत करने वालों को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि, पारण करने के समय अन्न और जल थोड़ा-थोड़ा करके ग्रहण करें । क्योंकि अचानक अधिक मात्रा में किया गया भोजन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है।
शुभम् भवतु ।
डॉ. ए . के. पाण्डेय
7574885030
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