शिल्पा गौतम की आत्महत्या के बहाने

May 28, 2024 - 23:05
 0  101
शिल्पा गौतम की आत्महत्या के बहाने

शिल्पा गौतम की आत्महत्या के बहाने

प्रज्ञा मिश्रा

एक ही तरीके की खबर जब लगभग रोजाना ही पढ़ने , देखने और सुनने को मिलने लगे तो वो आम लगने लगती है। लेकिन ऐसी आम हो चली खबर , समाज में आ रहे किसी खास बदलाव की तरफ इशारा करती है। चूंकि , 

बड़े - सयाने लोग कह गए हैं कि समझदार को इशारा काफी है , इसलिए ऐसी खबरों के एक निश्चित पैटर्न को आने वाले भविष्य के एक अहम संकेतक के तौर पर लिया जाना लाज़िमी है। 

चुनाव के शोर में बाकी खबरें ऐसे ही दम तोड़ दे रही हैं। मुझे जिस खबर ने सोचने और लिखने को मजबूर कर दिया है वो है शिल्पा गौतम की आत्म हत्या। 

जो लोग नहीं जानते वो बस इतना जान लें कि शिल्पा BHEL में एक उच्च पद पर थीं, तलाकशुदा 36 वर्षीय महिला थी। एक IRS के साथ रिलेशनशिप में थीं, जिससे उनकी मुलाकात डेटिंग ऐप के जरिए हुई थी ।

एक लंबा चौड़ा सुसाइड नोट मिला है उनकी डायरी से शायद। नोट का सार यह है कि उनका पार्टनर अब उनसे दूरी बना रहा था। वो विवाह करने की इच्छुक थीं । उस पुरुष के संबंध और भी कई स्त्रियों से थे। ऐसी तमाम अन्य बातें। 

अब आते हैं उस पैटर्न पर, जिसकी मैं बात कर रही हूं। खाली समय में स्क्रीन स्क्रॉल करते करते हम कहां आ पहुंचे हैं, बहुत ही कम लोगों को इस बात का अंदाजा है। 

कितनी ही स्टडीज से ये साबित हो रहा है और खुद मैंने भी महसूस किया है कि स्क्रोलिंग से सबसे बुरा असर हमारी एकाग्रता पर पड़ता है। आपने गौर किया होगा कि एक मिनट से ज्यादा बड़े वीडियो भी अब हम देख नहीं पाते, अगर बहुत ज्यादा अपवादिक कंटेंट न हो तो। हमारी एकाग्रता क्षमता में इस नकारात्मक बदलाव के कई सारे अन्य पहलू भी सामने आ रहे हैं। जैसे हमारे अंदर सहनशीलता खत्म होती जा रही है। दूसरे , हम हद से ज्यादा जजमेंटल होते जा रहे हैं। कैसे ? धोनी ने अच्छा खेला , सौ पोस्ट, मीम्स, रील्स आदि के जरिए उनको महान बताया जाने लगा। यह सब हमने देखा , हमारे दिमाग ने पढ़ा और sub conscience ने ग्रहण कर दिया। अगले दिन , धोनी खराब खेल गए, धोनी के प्रति नकारात्मकता की बाढ़ आ गई। हमने , हमारे दिमाग ने यह भी ग्रहण किया। इसी पैटर्न को रोज देखते देखते दिमाग इस बात का आदी हो ही जायेगा कि कोई अच्छा करे तो बोलो ही, बुरा कर तब भी तुरंत रिएक्ट करो। 

सोशल मीडिया किसी भी बात को अब यूं ही नहीं जाने दे रहा। सब कुछ हमारे सामने परोस रहा है। थाली में कितना ही परोसा जाए, खायेंगे तो अपने पेट की क्षमता तक ही ना? अपने दिमाग की क्षमता भी तो पहचानिए। 

हाल ही में, लोगों ने हीरामंडी को भर भर कोसा। मैंने भी शुरू में एक पोस्ट डाली थी जब spotify पर उसका एड दिख गया था। उसके बाद , हीरा मंडी से जुड़ा एक भी कंटेंट मैंने आजतक नहीं देखा।ना ही उसके कोई भी गाने सुने , क्योंकि मैंने तय कर लिया था कि हर कूड़ा उठाना मेरी जिम्मेदारी नहीं है। कुछ कूड़े के ढेर से बच निकलने में ही भलाई होती है। 

दरअसल , हम उस दौर में बखूबी पहुंच चुके हैं जहां हम मोबाइल नहीं चला रहे, हमारा मोबाइल हमें चला रहा है।

खैर , मेरी बात शिल्पा से शुरू हुई थी। ऊपर इतना कुछ इसलिए कहना पड़ा ताकि आप सब समझ सकें कि हम सब अपनी खुशी इस आभासी दुनिया में ढूंढ रहे हैं । गौर कीजिए -" हम सब" । इसका अर्थ यह कि जो चीज हमारे पास है नहीं वही तो ढूंढ रहे हैं ना। तो न मेरे पास है और न आपके पास। फिर हम दोनों एक जैसे ही तो हैं। तो जो मेरे पास है ही नहीं आपको मुझसे कैसे मिल सकता है ? 

अपनी खुशी किसी और इंसान या सोशल मीडिया में ढूंढने वालों के साथ आजकल यही हो रहा है जो शिल्पा के साथ हुआ। किसी के साथ कम तो किसी के साथ ज्यादा। क्योंकि व्यक्तित्व में ठहराव अब मनुष्य का मूल स्वभाव रहा ही नहीं। तो कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के साथ कितनी देर ठहरेगा ? समझना आसान है।

शायद आप मेरी बात का आशय समझ गए हों , आशा तो यही है। खुशी ढूंढना मुश्किल नहीं है। प्रकृति में ढूंढिए, जिसकी भोर खूबसूरत, जिसकी शाम रंगों भरी, रात तारों से जगमगाती। अनेकों अनेक रंग और ढंग के पक्षी , फूल , झरने , नदियां , सीपियां और भी बहुत कुछ है प्रकृति के पास हमारे लिए। एक बार उसके पास भी जाकर देख लीजिए। और हां, जाते समय ये मोबाइल कहीं छुपा कर जाइएगा। 

आप सब अपना खूब ख्याल रखिए।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow