श्रद्धा सुमन अर्पण ईश्वर प्रेम, सेवा और गुरु भक्ति की मिसाल थी डॉ. विशाखा त्रिपाठी

Nov 27, 2024 - 13:56
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श्रद्धा सुमन अर्पण   ईश्वर प्रेम, सेवा और गुरु भक्ति की मिसाल थी डॉ. विशाखा त्रिपाठी

डॉ. विशाखा त्रिपाठी हमेशा हर भक्तों के दिल में रहेंगी

जगद्गुरु कृपालु परिषत् (जे.के.पी.) की अध्यक्षा, सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी , जिन्हें स्नेह से बड़ी दीदी कहा जाता था, अपने दिव्य व्यक्तित्व, अनुशासन और निःस्वार्थ भक्ति के लिए जानी जाती थीं। उनका जन्म 1949 में भक्ति धाम के पास लीलापुर गाँव में हुआ। वह जगद्गुरु कृपालु जी महाराज की ज्येष्ठा पुत्री थीं। बचपन से ही उनके शांत और दृढ़ स्वभाव ने उन्हें सबसे अलग बना दिया। बाद में उन्होंने अपनी निःस्वार्थ सेवा और गुरु भक्ति से लाखों लोगों के जीवन को नई दिशा दी।

सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी ने 2002 में जगद्गुरु कृपालु परिषत् का नेतृत्व संभाला। उनके दूरदर्शी नेतृत्व में परिषत् ने दुनिया भर में 50 लाख से ज्यादा लोगों तक आध्यात्मिक और सामाजिक सेवाएँ पहुँचाईं। उनके प्रयासों से जगद्गुरु कृपालु चिकित्सालय और शिक्षण संस्थानों ने समाज के हर वर्ग को लाभ पहुँचाया। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें राजीव गांधी ग्लोबल एक्सीलेंस अवार्ड और नारी टुडे पुरस्कार जैसे कई सम्मान मिले।  

सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी का हर दिन भक्ति और सेवा के लिए समर्पित था। उनकी भक्ति और समर्पण ने यह दिखाया कि मानव जीवन का सच्चा उद्देश्य ईश्वर और गुरु की सेवा है। सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी का हर शब्द, हर काम जगद्गुरु कृपालु जी महाराज के अनुयायियों को सुकून और प्रेरणा देता था। उनकी सरलता और मधुर स्वभाव ने हर किसी को उनके करीब महसूस कराया। चाहे हल्के-फुल्के अंदाज में किसी को सांत्वना देना हो या किसी को सही रास्ता दिखाना, उनका हर प्रयास लोगों के दिलों को छू जाता था। उनका जीवन प्रेम, सेवा और समर्पण का जीता-जागता उदाहरण था। उन्होंने अपने व्यवहार और जीवनशैली से यह दिखाया कि असली नेतृत्व अधिकार में नहीं, बल्कि सेवा और निःस्वार्थता में है। उनकी सादगी और दूरदर्शी सोच ने हर किसी को प्रेरित किया।

सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी ने लगन एवं परिश्रम के साथ, विश्व के पाँचवें मूल जगद्गुरु, कृपालु जी महाराज के जन-कल्याण के कार्यों को आगे बढ़ाया। जगद्गुरु कृपालु जी महाराज जैसे संत इस धरती पर कई शताब्दियों में एक बार आते हैं। कृपालु जी महाराज ने 1922 में उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में जन्म लिया और 16 वर्ष की आयु से ही भगवान् का प्रचार प्रारम्भ कर दिया। 91 वर्षों के अपने जीवन काल में उन्होनें भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में वेदों-शास्त्रों के ज्ञान का भंडार खोल दिया। आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ उन्होनें लोगों की सामाजिक एवं शारीरिक उन्नति के लिए भी कई सराहनीय प्रयास किये, जिन्हें उनकी ज्येष्ठा सुपुत्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी ने बहुत लगन के साथ आगे बढ़ाया। 

जगद्गुरु कृपालु जी महाराज ने साल 2002 में जगद्गुरु कृपालु परिषत् की बागडोर अपनी तीनों सुपुत्रियों - डॉ. विशाखा त्रिपाठी , डॉ. श्यामा त्रिपाठी और डॉ. कृष्णा त्रिपाठी के हाथों में सौंप दी थी। इसी क्रम में डॉ. विशाखा त्रिपाठी जगद्गुरु कृपालु परिषत् और मनगढ़, कुंडा स्थित भक्ति मंदिर की अध्यक्ष्या नियुक्त की गयीं। तब ही से उन्होंने जीवों के आध्यात्मिक एवं भौतिक उत्थान के अपने जगद्गुरु पिता के लक्ष्य को पूरा करने के प्रयास में अपना पूरा जीवन लगा दिया।

जगद्गुरु कृपालु जी महाराज ने जन सामान्य को भक्ति पथ पर आगे बढ़ाने के लिए तीन प्रमुख मंदिरों की स्थापना की। इनमें से श्री वृन्दावन धाम स्थित प्रेम मंदिर आज पूरी दुनिया में अपने अनोखे सौंदर्य और भक्ति भाव के लिए जाना जाता है। प्रेम मंदिर में प्रतिदिन लाखों लोगों की भीड़ श्री राधा-कृष्ण और श्री सीता-राम के दर्शन के लिए उमड़ती है। कृपालु जी महाराज ने राधा रानी की अवतार स्थली श्री बरसाना धाम में कीर्ति मंदिर की स्थापना की जो इस दुनिया में कीर्ति मैया की गोद में विराजित नन्हीं सी राधा रानी का इकलौता मंदिर है। इसी प्रकार अपने जन्मस्थान श्री कृपालु धाम मनगढ़, प्रतापगढ़ में जगद्गुरु कृपालु जी महाराज ने भक्ति मंदिर की स्थापना की। अभावग्रस्त समाज को शारीरिक व्याधियों से बचाने के लिए जगद्गुरु कृपालु जी महाराज ने वृंदावन, बरसाना और श्री कृपालु धाम - मनगढ़ में तीन निःशुल्क हॉस्पिटल स्थापित किये जहाँ न केवल इलाज और चेकअप बल्कि दवाइयाँ भी बिल्कुल मुफ़्त में दी जाती हैं। इसके साथ ही साथ ही जगद्गुरु कृपालु परिषत् द्वारा नियमित रूप से साधना शिविरों का आयोजन किया जाता है जिसमें लोगों को भगवान् की भक्ति का प्रामाणिक तरीका सिखाया जाता है एवं रूपध्यान संकीर्तन और साधना के द्वारा उसका निरंन्तर अभ्यास कराया जाता है। 2013 में जगद्गुरु कृपालु जी महाराज के गोलोक जाने के बाद भी डॉ. विशाखा त्रिपाठी ने संस्था की गतिविधियों में कोई कमी नहीं आने दी। बल्कि कड़ी मेहनत और लगन से उन्होंने जगद्गुरु कृपालु परिषत् का दायरा कई गुना बढ़ा दिया जिससे लोगों को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में बहुत लाभ मिला।  

अपने गुरु, जगद्गुरु कृपालु जी महाराज के अप्रत्यक्ष हो जाने के बाद भी लाखों भक्त डॉ. विशाखा त्रिपाठी के नेतृत्व में श्री महाराज द्वारा बताये गए भक्ति मार्ग पर चल रहे हैं। उन लाखों लोगों को एक साथ ज़ोर का आघात लगा जब 24 नवंबर 2024 की सुबह, एक दुःखद सड़क दुर्घटना में सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी का अचानक निधन हो गया। उनकी यह असमय विदाई उनके प्रिय जनों और परिषत् के लिए अपूरणीय क्षति है। वह अब शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी शिक्षाएँ और उनकी सेवा का जज़्बा हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। उन्होंने अपने जीवन को ईश्वर और गुरु की सेवा में समर्पित किया और लाखों लोगों को भी यही रास्ता दिखाया। उनकी आत्मा गुरु चरणों में शांति प्राप्त करे। उनके दिखाए रास्ते पर चलना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उनके जीवन का संदेश – प्रेम, सेवा और भक्ति – हमें हमेशा प्रेरित करता रहेगा

अशोक कुमार मिश्र 

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