भक्ति के मार्ग में हनुमान ही तो है जो राम जी की कृपा से भव सागर पार करवा देते है
भक्ति के मार्ग में हनुमान ही तो है जो राम जी की कृपा से भव सागर पार करवा देते है

हिन्द भास्कर:- रविवार की शाम को, जब आकाश में हल्की आभा फैलने लगी और हल्की ठंडी हवाएं चल रही थीं, तब मैंने अपने कदम नाका हनुमान गढ़ी से सरयू घाट की ओर बढ़ाए। सरयू की धार में बसी वह अद्वितीय शांति, जैसे समय थम सा गया हो। मन में अजीब सी आस्था और उत्साह का संचार हो रहा था क्योंकि यह वह स्थान था जहाँ रघुकुल नायक श्री राम ने पापों से मुक्ति पाने के लिए जन-जन को शरण दी थी। यहीं से आस्था की डुबकी से शरीर और आत्मा को नयापन मिलता है।
मुझे याद है जब मैंने पांवों को सरयू के निर्मल जल में डुबोया, तो मेरे मन में एक अजीब सा संतोष छा गया। श्री राम के दर्शन के साथ साथ, यह स्नान मेरे जीवन के एक अद्वितीय अनुभव में बदल गया। यह वैसा ही अनुभव था जैसे श्री राम ने निषादराज से कहा था, “जहां तक नदी जाती है, वहां तक तुम्हारी पहुँच है, हम एक ही हैं।” वह सिद्धांत आज भी हमारे दिलों में जीवित है। सरयू की डुबकी के बाद राम रथ से अयोध्या की गलियों में चलते हुए मेरे प्रभु श्री राम के भव्य मंदिर की ओर मेरा मार्ग प्रशस्त हुआ। बिड़ला धर्मशाला से पैदल पंक्ति में प्रभु के दर्शन के लिए बढ़ चला मन में हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए, दूरी थी लेकिन आस्था ने उस दूरी को कब पूरा कर दिया पता ही नहीं चला। खूबसूरत विशाल मंदिर में पहुंच चुका था।
नव्य भव्य दिव्य मंदिर के दर्शन हो रहे थे। मेहनतकश विशाल मंदिर को खूबसूरत बनाने में अपनी आस्था निवेदित कर रहे थे। उनके हाथों से खूबसूरत कलाकृतियां मंदिर की दीवारों को आकर्षक बना रही है। मंदिर में हर भक्त के चेहरे पर एक आस्था की चमक थी। जब मैंने प्रभु श्री राम के दर्शन किए, तो ऐसा लगा जैसे साक्षात भगवान मेरे सामने खड़े हों। उनकी दिव्यता ने मुझे अपने आत्मीयता से भर लिया। श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत अनुभव हो रहा था। ऐसा लगा जैसे हनुमान जी की आशीर्वाद से हर कष्ट समाप्त हो गया हो। यह हनुमान जी की ही कृपा है कि बगैर किसी दिक्कत के अयोध्या की यात्रा रग रग में बसती जा रही थी।
हनुमान जी गोरखपुर से लेकर नाका हनुमान मंदिर और फिर अयोध्या के छोटे बड़े मंदिरों का दर्शन करवाकर इस जीवन को धन्य कर दिया, तृप्त कर दिया। यह उनकी ही कृपा है कि अपने प्रभु राम को मेरे अन्तस में भी जगह दे रहे थे। हनुमान के बगैर राम को कौन पा सकता है। भक्ति के मार्ग में हनुमान ही तो है जो राम जी की कृपा से भव सागर पार करवा देते है। मंदिर में प्रभु को अपलक निगाहों से देखते देखते रोम राम झंकृत हो रहे थे। नयनाभिराम राम को दिल में बसाकर मुस्कुराया और कहा आज राम से राम को चुरा लिया मैने निकासी द्वार पर राम जी कृपा से मंदिर की ओर से हर भक्त को प्रसाद में लड्डू दिए जा रहे थे। मैने भी लिया।
हर दाने को ग्रहण करते वर्षों से जगी आस्था तृप्त हो रही थी। मंदिर से बाहर आते ही, मैं उन गलियों से गुजरते हुए हनुमान जी की चरणों में निवेदन कर रहा था। हनुमान जी के दर्शन ने मेरे भीतर एक नई ऊर्जा का संचार किया। अयोध्या की भव्यता और दिव्यता के साथ-साथ, यह अनुभव मेरे जीवन का अविस्मरणीय क्षण बन गया। हनुमान गढ़ी पहुंचते पहुंचते रात्रि के आठ बज चुके थे। प्रसाद के साथ हनुमान गढ़ी की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए जन सैलाब अद्वितीय रहा। जय श्रीराम का जयघोष जोश को दुगुना कर रहा था। सीढ़ियों पर व्यवस्थित होकर आगे बढ़ना आस्था को और भी ताकत दे रहा था।
रात होने के बाद भी भक्ति के सागर में डूबे हजारों की संख्या में भक्त हनुमान जी को दिव्य दर्शन से आह्लादित रहे, प्रसाद लिया, हनुमान चालीसा पढ़ी, सुंदर कांड का पाठ किया और फिर से हनुमान जी का दर्शन कर प्रणाम निवेदित कर अपनी मनोकामना रखी। मन में भज ले राम राम राम मनवा गाते सीढ़ियों से उतरते गए। “वापसी के रास्ते में, एक युवक से मेरी मुलाकात हुई। वह आटो ड्राइवर था, लेकिन उसकी आंखों में एक अलग ही आस्था थी। उसकी कड़ी मेहनत और सपनों को पूरा करने की ललक ने मुझे गहरे तक छुआ। युवक को मॉडलिंग और एक्टिंग में दिलचस्पी रही है।
इसी लिए जिम जाने का शौक भी रहा। लेकिन माता पिता के न होने और पारिवारिक जिम्मेदारियों ने उसके शौक को विराम दे दिया। मैने उसे आगे बढ़ने और कुछ नया करने को प्रेरित किया तो उसने मुझसे एक वादा लिया, कुछ अच्छा होगा तो आपसे मिलूंगा जरूर। आप अपने राम जी से कहिएगा वो ...मैने कहा बिल्कुल। मैने कह तो दिया पर अब यह तो राम जी की नगरी है, राम जी ही जाने। मेरे वादे को वो ही पूरा करे। हा मुझे अपने राम जी पर पूरा भरोसा है तभी मैंने उससे वादा किया कि एक दिन उसकी भी जिंदगी बदल जाएगी, जैसे राम जी ने हर व्यक्ति के जीवन में नया सूरज उगाया है। राम राज्य का यही तो सिद्धांत है—जहां सबको अपनी मेहनत का फल मिलता है, और हर किसी को बराबरी का हक मिलता है।
अयोध्या, वास्तव में एक ऐसी भूमि है, जहाँ हर व्यक्ति को अपने हुनर के अनुसार सम्मान मिलता है। यहां की गलियां, मंदिर, और हर एक कंठ से निकलने वाले भजनों में एक ऐसा आकर्षण है, जो आत्मा को शांति और संतोष देता है। राम राज्य में बेशक कोई भेदभाव नहीं होता, हर किसी को समान अवसर और सम्मान मिलता है। “जन्म से लेकर मृत्यु तक, हर पल है राम का संग, भक्ति की इस गंगा में, सब धोते हैं पापों के रंग।” अयोध्या की इस यात्रा ने मुझे सिखाया कि हर किसी का एक स्थान होता है, और भगवान हर व्यक्ति की भक्ति और मेहनत के प्रति सजग रहते हैं। राम जी का ये संदेश, “राम का राज्य, जहां सभी समान हैं, जहां मेहनत और श्रद्धा का सम्मान होता है,” मुझे पूरी तरह समझ में आया। राम के इस राज्य में कोई भी भूखा या दुखी नहीं रहता।
हर दिल में अयोध्या, हर आहट में राम, मन-मंदिर में गूंजे सदा पावन नाम। चरणों की वो रेखा, धरा पर अमिट, सुगंधित हैं वाणी, सुरीली है वाम।
हर दिल में अयोध्या, हर आहट में राम।
सरयू की लहरों में गाथा पवित्र, नयन में बसे दीप, जलता है चित्र। न तीरथ की दूरी, न काशी की मांग, जहाँ राम हों, वहीं स्वर्ग का संग।
हर दिल में अयोध्या, हर आहट में राम।
प्रभु की चरण-धूलि, सदा दे प्रकाश, हृदय में हो श्रद्धा, अधर में प्रकाश। न विभाजन कोई, न वैराग्य की छाँव, बस सेवा, समर्पण, भक्ति का भाव।
हर दिल में अयोध्या, हर आहट में राम।
नवीन पांडेय (वरिष्ठ रंगकर्मी एवं लब्ध प्रतिष्ठित उद्धोषक)
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