बाल दिवस पर कुछ दोहे - केशव शुक्ल
बाल श्रमिक क्या जानते,बाल दिवस है आज।
धधक रही हो भूख की, पेट में जिनके आग।।
नीति नियामक आज के,बदल रहे हैं देश।
जनता जाये भाड़ में, उनको क्या है क्लेश।।
भूखे बच्चे आज भी ,करते दिखते काम।
उनके मालिक ने उन्हें, कहाँ दिया आराम।।
पढ़ना-लिखना था जिन्हें, धोते कप औ प्लेट।
घुड़की मिलती है उन्हें, हो जाता यदि लेट।।
उनके जो जननी जनक, हैं वे भी लाचार।
जीवन यापन भी कठिन,चौपट कारोबार।।
सब पर भारी पड़ रही , वही पेट की भूख।
मरता क्या करता नहीं, ममता जाती सूख।।
अपने-अपने भाग्य हैं, अपने-अपने कर्म।
सबकी अपनी जिन्दगी,सबके अपने धर्म।।
केशव शुक्ल
सम्पर्क: 7905335219
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