पुस्तक समीक्षा आध्यात्मिक चेतना जागृत करने के लिए पढ़े "भक्ति-सनातन का आधार"

अशोक कुमार मिश्र
इस्कॉन लखनऊ के अध्यक्ष अपरिमेय श्याम दास प्रभु जी द्वारा रचित "भक्ति- सनातन का आधार" एक ऐसी पुस्तक है जो कृष्ण भक्ति के महत्व और उसकी गहनता को सरल शब्दों में प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक उन सभी लोगों के लिए है जो अपने जीवन में आध्यात्मिक चेतना को जागृत करना चाहते हैं और मन की शांति, संतोष और वास्तविक सुख (आनंद) की खोज में हैं। कृष्ण भक्ति केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के हर पहलू में गहराई से जुड़ी हुई है। भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति हमें आत्मा की शुद्धि और मन की शांति प्रदान करती है। यह हमें अपने जीवन की दिशा को सही मार्ग पर ले जाने में सहायक होती है।
इस पुस्तक में यह बताया गया है कि कृष्ण भक्ति को समझना और उसे अपने जीवन में अपनाना क्यों आवश्यक है। जब हम अपने जीवन में कृष्ण भक्ति को अपनाते हैं, तो हम अपनी आध्यात्मिक चेतना को उन्नत कर सकते हैं। इसका सबसे सरल और प्रभावी तरीका है मंत्रजप, यानी भगवान के पवित्र नाम का जाप करना।
भगवान श्रीकृष्ण, श्री राम के नाम का जाप करते समय हमारा मन धीरे-धीरे शांत होता है और हमारे भीतर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। इससे हमें आंतरिक शांति और सच्ची खुशी का अनुभव होता है। इस पुस्तक में विस्तृत रूप से समझाया गया है कि कैसे मंत्रजप और कृष्ण भक्ति के माध्यम से हम अपने जीवन को सुधार सकते हैं और अपनी आध्यात्मिक चेतना को ऊँचा उठा सकते हैं। यह पुस्तक मानव को एक नई दृष्टि और नई दिशा प्रदान करेगी, जिससे आप अपने जीवन को अधिक सार्थक और संतुलित बना सकेंगे।
"भक्ति- सनातन का आधार" पुस्तक के माध्यम से आप कृष्ण भक्ति के गहरे अर्थ को समझेंगे और अपनी आध्यात्मिक यात्रा पर अग्रसर होंगे। यह पुस्तक आपके लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शिका साबित होगी और आपको आत्मा की खोज में सहायक होगी। इसे पढ़कर आप जान पाएंगे कि कैसे भगवान के नाम का जाप करते हुए हम अपनी आध्यात्मिक चेतना को जागृत कर सकते हैं और अपने जीवन को नई दिशा दे सकते हैं।
प्रेम पथ पब्लिकेशन द्वारा 215 पृष्ठ की प्रकाशित इस पुस्तक को अपरिमेय प्रभु जी ने कृष्णकृपा मूर्ति श्री श्रीमद् ए.सी. भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद जी एवं अपने प्रिय गुरुदेव परम पूज्य गोपाल कृष्ण गोस्वामी महाराज जी को समर्पित किया है। इस पुस्तक को प्रभु जी ने बड़े ही मनोयोग और श्रद्धा के साथ लिखा है। इसमें आत्मा की खोज, कर्मों का फल, आत्मा और शरीर, माया और भ्रम, धर्म की सही समझ, चेतना की शुद्धि, ईश्वर को जानने का तरीका, परम भगवान, वर्ण आश्रम, चैतन्य महाप्रभु व शरणागति सहित 14 अध्याय है।
पुस्तक के लेखक अपरिमेय श्याम दास जी का जन्म एक संस्कारित कान्यकुब्ज कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ। बचपन से ही उन्हें आध्यात्मिक और पूजा-पाठ का माहौल मिला। उनकी दादी मां की इच्छा थी कि उनके पुत्र की पहली संतान लड़का हो। उन्होंने प्रार्थना की थी कि यदि लड़का हुआ तो वे भागवत कथा कराएंगी। कहा जाता है कि इसी संकल्प के कारण ही प्रभु जी का जन्म त्रयोदशी (प्रदोष व्रत) के दिन हुआ।उन्होंने इंटर तक की शिक्षा अपने गृह जनपद इटावा में प्राप्त की। इसके बाद स्नातक, परास्नातक ग्वालियर और कानपुर विश्वविद्यालय से किया। दिल्ली में 2004-2008 तक बैंक में सेवा देने का अवसर मिला। इसी बीच 2007 में उनका विवाह शिवरात्रि के दिन हुआ। विवाह से पहले 2006 में वे पहली बार राम नाम की चादर और तुलसी माला लेने इस्कॉन मंदिर इस्ट ऑफ कैलाश दिल्ली गए। वहीं भक्तों से मुलाकात हुई और उन भक्तों की कृपा से परम पूज्य गोपाल कृष्ण गोस्वामी महाराज जी के सानिध्य में आए। वहां से उनका सत्संग और शिक्षाओं को सुनना और प्रभुपाद जी की पुस्तकों का अध्ययन करना शुरू हुआ। प्रभु जी ने 2008 में अपनी धर्म पत्नी से सलाह ली कि अब बचा हुआ पूरा जीवन श्रीकृष्ण की भक्ति करेंगे, उनकी धर्म पत्नी ने आगे बढ़कर इस मार्ग पर बढ़ने के लिए मन से साथ दिया और कहा कि इस पूरे संसार में पशु-पक्षी और जीवों को जो परमात्मा खिलाता है, वही हमारा भी भरण-पोषण करेगा। इसी बीच में परम पूज्य गोपाल कृष्ण गोस्वामी महाराज जी ने 2011 में उनको हरिनाम दीक्षा दी और 2013 में वृंदावन में पवित्र कार्तिक मास देवोत्थान एकादशी को ब्राह्मण दीक्षा (वैष्णव दीक्षा) दी।
इटावा में वर्षों तक नॉन-स्टॉप प्रत्येक रविवार साप्ताहिक सत्संग कर प्रभु जी ने 10000 भक्तों के साथ प्रथम बार इटावा की धरती पर जगन्नाथ रथ यात्रा करवायी, जन्माष्टमी महा महोत्सव का आयोजन किया।
प्रभु जी ने इटावा के भक्तों व अपने माता-पिता जी के सहयोग से वहां इस्कॉन की स्थापना की। 2015 में गुरु महाराज जी के आदेश पर लखनऊ आकर इस्कॉन में अध्यक्ष पद को संभाल कर सेवायें प्रारम्भ कर दी। 2015 से लखनऊ में आध्यात्मिक चेतना का प्रसार उन्होंने प्रभुपाद जी व गुरु महाराज जी के आशीर्वाद से शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने लखनऊ इस्कॉन मंदिर का निर्माण तेजी से प्रारंभ कराया। उसके बाद प्रत्येक वर्ष उनके द्वारा जगन्नाथ रथ यात्रा, आनंदम महामहोत्सव (ग्रहस्थ भक्तों का महोत्सव), एक लाख दीपको का दीपोत्सव, यूथ महोत्सव सहित कई आयोजन करवाए जाते हैं। प्रभु जी ने15 अगस्त 2023 को प्रभुपाद यूथ आर्मी का गठन किया व लड़कियों के लिए IGF, बच्चों के लिये संस्कारशाला सहित कई नई-नई गतिविधियाँ शुरू कराई। प्रभु जी व उनकी धर्म पत्नी (माता जी) मिलकर अब तक लाखों लोगों को शाकाहार (प्याज व लहसुन भी नहीं) बना चुके हैं। इस पुस्तक के द्वारा प्रभुजी लोगों में आध्यात्मिक चेतना चलान चाहते है।
What's Your Reaction?






