गोरखनाथ शोधपीठ में नाथपंथ का अफगानिस्तान में प्रभाव विषय पर हुआ परिचर्चा का आयोजन
नाथ पंथ शैव एवं बौद्ध परम्परा के समन्वय का परिणाम है। - प्रो. राजवंत राव
गजनी, नागरहाल एवं काबुल अफगानिस्तान में नाथ पंथ के प्रधान केंद्र – अनुश्री
पश्तून कबीला के मुसलमान नाथपंथी परंपरा के प्रथाओं को अपने अनुसार आज भी अपनाए हुए है – अनुश्री
हिन्द भास्कर, गोरखपुर।
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय स्थित महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ में कुलपति प्रो. पूनम टंडन के संरक्षण में नाथ पंथ का अफगानिस्तान में प्रभाव विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में गोरखपुर विश्वविद्यालय के कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. राजवन्त राव, अफगानिस्तान में नाथ पंथ की रिसर्चर अनुश्री, प्राचीन इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग की सहायक आचार्य डॉ. पद्मजा सिंह, गणित एवं सांख्यिकी विभाग के आचार्य एवं आई. क्यू. ए. सी. के निदेशक प्रो. सुधीर श्रीवास्तव, विवेकानंद केंद्र के किशोर टोकेकर ने भारतीय उपमहाद्वीप में नाथ पंथ के विस्तार खासकर अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान में नाथ पंथ के प्रभाव एवं विस्तार पर अपने-अपने विचार रखे।
इस परिचर्चा में बीज वक्तव्य प्रो. राजवन्त राव ने दिया। उन्होंने नाथ पंथ के पश्चिमी भारत एवं अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान में नाथ पंथ के विस्तार पर ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक संदर्भ में प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गोरखनाथ के समय को ऐतिहासिक संदर्भों में 9 वीं सदी से पूर्व नहीं रखा जा सकता। सिद्धों का बौद्ध परंपरा की ओर झुकाव है। नाथ पंथ शैव एवं बौद्ध परम्परा के समन्वय का परिणाम है। नाथ पंथ का अफगानिस्तान में उत्पन्न सूफियों से गहराई से संबंध है।
परिचर्चा के आकर्षण का केंद्र रही अफगानिस्तान में प्रवास एवं अफगानिस्तान में नाथ पंथ पर शोध करके लौटी महाराष्ट्र की रिसर्चर अनुश्री। अनुश्री ने वहाँ के अपने अनुभवों एवं शोध को परिचर्चा में साझा किया। उन्होंने कहा कि गजनी, नागरहाल एवं काबुल अफगानिस्तान में नाथ पंथ के प्रधान केंद्र है। वहाँ के पश्तून जनजाति के मुसलमानों में नाथ पंथ के प्रति अभी भी असीम श्रद्धा है। आज भी पश्तून कबीला के मुसलमान नाथपंथी परंपरा के प्रथाओं को अपने अनुसार अपनाए हुए है। वे नाथ सिद्धों के प्रति आज भी मनौती एवं पारंपरिक पारिवारिक प्रथाओं को जारी रखे हुए है। पश्तूनी लोग नाथ पंथ को आज भी एक गूढ पद्धति मानते है। वहाँ रतन नाथ का विशेष श्रद्धा है। वे अपने साथ पश्तूनी भाषा में लिखित रतन नाथ चालीसा लेकर लौटी है। जिसका वहाँ नाथपंथी मुसलमानो के बीच प्रचार है। अनुश्री ने बताया कि तालिबान ने वहाँ अनेक बौद्ध स्थलों को नष्ट किया है परंतु उसने नाथपंथी मंदिरों एवं स्थलों को सुरक्षित रखा हैं।
कार्यक्रम का शुभारम्भ गोरक्षनाथ शोधपीठ के उप निदेशक डॉ. कुशलनाथ मिश्र ने समस्त आगंतुकों का स्वागत करते हुए किया। इस परिचर्चा में शोधपीठ के सहायक ग्रन्थालयी डॉ. मनोज कुमार द्विवेदी, रिसर्च एसोसिएट डॉ. सुनील कुमार, वरिष्ठ शोध अध्येता डॉ. हर्षवर्धन सिंह, अतुल, रवि, अवधेश, चिन्मयानन्द मल्ल आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अन्त में सहायक निदेशक डॉ. सोनल सिंह ने सभी आगंतुक प्रबुद्धजनों का आभार व्यक्त करते हुये धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का फेसबुक लाइव प्रसारण किया गया जिसमें पूर्व शिक्षा मंत्री, उत्तर प्रदेश, सतीश द्विवेदी, उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग की अध्यक्ष प्रो. कीर्ति पाण्डेय, प्रो. दिनेश सिंह आदि जुड़े रहे।
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