मौसम उदास और मायूस है पत्रकारिता के एक स्तंभ गिरने से
मौसम उदास और मायूस है पत्रकारिता के एक स्तंभ गिरने से

मिर्जापुर(हिन्द भास्कर):- दिन उदास है और मौसम मायूस । 30 जुलाई की दोपहरिया है। न धूप है और न बादल बरस रहे। हवा भी नहीं चल रही। इसका प्रमुख कारण तो यही है कि सब को जगाने वाला यशस्वी तथा तेजस्वी पत्रकार दिनेश कुमार उपाध्याय चिर निद्रा में खुद ही सो गए। 1990 से 2020 के तीन दशकों में दिनेश उपाध्याय लगभग सभी प्रमुख समाचार पत्रों में बतौर सीनियर रिपोर्टर या ब्यूरोचीफ रहे।
1990 में जब वे 'भारत दूत' दैनिक अखबार से जुड़े तो सायंकालीन प्रकाशित होने वाले पत्र की इंतजारी होती थी। दिनेश उपाध्याय के पास एक तीसरी दृष्टि थी। जिस बीट (क्षेत्र) की रिपोर्टिंग का जिम्मा मिलता था, उसकी अतल गहराइयों तक पहुंच कर तथ्यों को अखबार के पन्नों पर उसे रख देते थे। कुछ दिनों तक 'भारतदूत' की सेवा के बाद वे 'अमर उजाला' में बतौर डेस्क रिपोर्टर के रूप में तैनात हुए। यहां इन्हें क्राइम बीट मिला।
क्राइम बीट में वे इतने सफल पत्रकार थे कि शायद मिर्जापुर का कोई पत्रकार उनका मुकाबला कर सके। पुलिस की जांच बाद में आती थी और दिनेश की रिपोर्ट पहले छप जाती थी। 'अमर उजाला' के बाद वे 'आज' अखबार में मेरे सहयोगी हुए। दिनेश की वजह से मैं निश्चिंत रहता था कि देर रात तक की कोई खबर छूटेगी नहीं। दिनेश का पत्रकारिता रथ जब 'हिंदुस्तान' दैनिक पहुंचा तो इस अखबार को देखे बिना लोगों को चैन नहीं मिलता था। यहां वे ब्यूरोचीफ की भूमिका में थे।
हिंदुस्तान अखबार के बाद वे लंबे समय तक दैनिक जागरण में रहे। दैनिक जागरण ने प्रयोग के तौर पर क्राइम क्षेत्र के अलावा हेल्थ विभाग का भी दायित्व सौंपा। हेल्थ बीट में वे अति सफल रहे। मरीजों की कठिनाइयों को उजागर किया करते रहे। दैनिक जागरण अख़बार में काम करते समय वे बीमार हुए। अखबार से नाता टूटा तो जरूर लेकिन धड़कनों में अखबार अंत समय तक था। उनके निधनकी ख़बर से सभी हतप्रभ हो गए। मुझे तो व्यक्तिगत क्षति लग रही। पत्रकारिता में वे कहीं भी रहे लेकिन बतौर सीनियर मुझे सम्मान देते रहे। दिनेश का जाना पत्रकारिता का एक स्तंभ ढह जाना ही कहेंगे।
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