।।नवरात्र विशेष।। भगवान श्रीहरि के मोहिनी स्वरूप की परमशक्ति पीठ महालसा नारायणी मंदिर

Sep 29, 2025 - 19:43
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।।नवरात्र विशेष।।  भगवान श्रीहरि के मोहिनी स्वरूप की परमशक्ति पीठ महालसा नारायणी मंदिर
श्री म्हालसा नारायणी

दर्शन मात्र से मिलती है राहु की छाया से मुक्ति

आचार्य संजय तिवारी

सनातन वैदिक हिंदू संस्कृति की आदि शक्ति पीठों से जुड़ी भगवान श्रीहरि की परम शक्ति के स्वरूप का एक मात्र मंदिर गोवा अर्थात गोमांतक में है। सागर के किनारे स्थित यह पीठ भगवान परशुराम द्वारा मुक्त कराई गई पृथ्वी के उस हिस्से पर अवस्थित है जिसे गोमांतक या गोवा नाम से आज विश्व जान रहा है। बीयर, बार, कसीनो और सी बीच से कुख्यात पर्यटक स्थल गोवा वास्तव में सनातन संस्कृति की परम वैभवशाली परंपरा में दक्षिण की काशी है, यह बहुत कम लोगों की जानकारी में है। गोवा आज पुनः सनातन वैभव के साथ उभर रहा है जहां एक मुकम्मल नगर केवल मंदिरों का ही है। भगवान शिव अर्थात महादेव, भगवान परशुराम और भगवान श्रीहरि की मोहिनी परमशक्ति से पुनः गोवा के संदर्भ बहुत गहरे तक जुड़ने लगे हैं।

अभी चर्चा करते हैं भगवान श्रीहरि के मोहिनी स्वरूप की एकमात्र शक्ति पीठ की जिसे पुर्तगालियों ने बिल्कुल नष्ट कर दिया था। आज यह शक्ति पीठ पुनः नए वैभव के साथ मां महालसा नारायणी मंदिर के भव्य स्वरूप में उसी स्थल पर विराजमान हो चुकी है। इस पीठ की सबसे बड़ी मान्यता यह है कि राहु जैसे दुष्ट ग्रह से ग्रसित कोई मनुष्य इस मंदिर में दर्शन मात्र से उससे मुक्त हो जाता है।

ध्वंस हो चुके मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया है जो स्थापित वास्तुकार अभिजीत सधाले की देखरेख में अभी भी जारी है।

सत्य शपथ पीठ

माता महालसा नारायणी देवी के इस स्थान की महत्ता यहां के सत्य शपथ को लेकर भी है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थल पर आकर पुर्तगाली शासक भी न्याय के लिए शपथ लेते थे। मान्यता है कि यदि कुछ विवाद की स्थिति होती है तो लोग यहां आकर शपथ लेते थे। सत्य बोलने वाले के साथ हमेशा न्याय होता था। असत्य बोलने वाले का अनिष्ट होता था। देवी की इस शक्ति से पुर्तगाली भी भयभीत रहते थे।

भगवान श्रीहरि की शक्ति 

मां महालसा नारायणी देवी को मोहिनी के साथ पहचाना जाता है, जो भगवान विष्णु का एक स्त्री-अवतार थीं। महालसा के चार हाथ है जो एक त्रिशूल, एक तलवार, एक कटा हुआ सिर, और एक पीने का पात्र धारण किए होते हैं। वह प्रणाम की मुद्रा-युक्त एक दानव या पुरुष के ऊपर खड़ी होती हैं, और उनका बाध या शेर कटे हुए सिर से गिर रहे खून को चाट रहा होता है। वे यज्ञोंपवीत (जनेउ) धारण किए हुए भी रहती हैं, जो आमतौर पर देवताओं द्वारा धारण किया जाता है। गौड़ सारस्वत ब्राह्मण और गोवा तथा दक्षिण कनारा के वैष्णव उन्हें मोहिनी रूप में पहचानते हैं और उन्हें नारायणी और राहू-मथानी (राहू वधकर्ता) नामों से बुलाते हैं, जैसा की भविष्य पुराण में कहा गया है। इस मन्दिर में, महालसा देवी को मोहिनी और भगवान विष्णु से जोड़ा जाता है, खन्दोबा सम्प्रदाय में, उन्हें देवी पार्वती और खन्दोबा (शिवजी का एक रूप और पार्वती जी के पति) के रूप में माना जाता है।

पुराण वर्णित महालसा नारायणी मंदिर वेर्णा गोवा 

म्हालसा नारायणी मंदिर अथवा महालसा नारायणी मंदिर गोवा के प्रमुख मंदिरों में से एक है। प्राचीन साहित्य में अनेक स्थानों पर महालसा नारायणी देवी का उल्लेख गोमान्तक क्षेत्र से जोड़कर किया गया है। कदाचित यही गोवा की प्राचीनतम अधिष्ठात्री देवी हैं। ऐतिहासिक दस्तावेजों में 16वीं शताब्दी के गोवा के विषय में वर्णन किया गया है, जब पुर्तगालियों ने इस धरती पर अपना अधिपत्य जमाकर यहाँ के मंदिरों को ध्वस्त करना आरम्भ किया था। वरण्यपुरम अथवा वरुणापुरम में स्थित देवी म्हालसा के मंदिर के विषय में प्रमुखता से वर्णन किया गया है जैसे कि पुराण में भी लिखा गया है। पुर्तगालियों के आगमन से पूर्व यह मंदिर इस क्षेत्र के विशालतम मंदिरों में से एक था।

प्रचलित कथाएं

गांव के लोकजीवन में मां महालसा के बारे में प्रचलित है कि यहां देवी वायु के रूप में गोमान्तक आयी थीं। विराजमान होने के लिए उन्होंने उपयुक्त स्थान की खोज आरम्भ की। अंत में वे वरण्यपुरम में स्थायी हो गयीं। वहां के लोगों ने उन्हें पेयजल की कमी के विषय में जानकारी दी तब देवी ने अपने पैर के अंगूठे से धरती को भेदकर एक सरोवर की रचना की, जहां से पेयजल का सोता फूट पड़ा।

उस स्थान का नाम पड़ा, नुपुर तीर्थ। नुपुर देवी के चरणों के आभूषण का नाम है। देवी के यहाँ विराजमान होते ही उनके लिए एक मंदिर की रचना हुई। समीप ही लेटराइट (लोह खनिज) की शिलाओं द्वारा एक अन्य विशाल जलकुंड की भी संरचना की गयी। ये दोनों जलकुंड धरती के भीतर एक ही जलस्त्रोत से जुड़े हुए हैं। यह स्थान वरण्यपुरम के सामाजिक जीवन का केंद्र बिंदु बन गया था जो साथ ही साथ, एक प्रमुख व विशाल व्यापारिक केंद्र भी बना।

सागर मंथन कथा का विशेष संदर्भ

मां महालसा नारायणी देवी का सम्बन्ध सागर मंथन की पौराणिक कथा से भी है। भगवान विष्णु ने सागर मंथन से प्राप्त अमृत का वितरण करने के लिए मोहिनी अवतार धारण किया था। अमृत का पान करने के लिए स्वरभानु नामक एक असुर भी देवताओं की पंक्ति में कपट से बैठ गया था। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उस असुर के दो भाग कर दिए थे। असुर का सर राहु कहलाया तथा उसके धड़ को केतु कहा गया। भगवान विष्णु ने मोहिनी के रूप में राहु का पीछा किया। महालसा नामक पहाड़ी पर जाकर मोहिनी ने राहु का वध किया तथा उसके ऊपर खड़ी हो गयी। भगवान विष्णु का यही अवतार महालसा नारायणी के रूप में अमर हो गया। उन्हें राहु मर्दिनी भी कहा जाता है। 

 

मंदिर की पुष्करणी

अन्य पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी महालसा मल्हारी मार्तंड अर्थात् खंडोबा की पत्नी है। खंडोबा भगवान शिव के ही एक रूप हैं जिन्हें देश के पश्चिमी भागों में बड़ी श्रद्धा से पूजा जाता है। महालसा नारायणी मंदिर से कुछ ही दूरी पर मल्हारी मार्तंड का मंदिर भी है। कदाचित मल्हारी मार्तंड का यह मंदिर पूर्वकालीन महालसा नारायणी मंदिर परिसर का ही एक भाग रहा होगा। एक प्रकार से देखा जाए तो यह कथा पहली कथा से असम्बद्ध नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव मोहिनी पर मोहित हो गए थे। इसी कारण उन्होंने खंडोबा का मानवी अवतार ग्रहण किया था ताकि वे महालसा से विवाह कर सकें।

एक अन्य दंतकथा के अनुसार मां महालसा देवी माता पार्वती का ही एक रूप है। मणि एवं मल्ला नामक असुरों का वध करने के लिए भगवान शिव ने भैरव का तथा देवी पार्वती ने महालसा का अवतार ग्रहण किया था।

वेर्णा का महालसा नारायणी मंदिर

 इसके परिसर व मंदिर का इन्ही दिनों उसी स्थान पर पुनर्निर्माण किया गया है, जहां वह पूर्व में स्थित था। आज वेर्णा गोवा का आद्यौगिक जिला बन चुका है। उसमें विभिन्न प्रकार के अनेक कारखाने एवं कार्यालय हैं। 

रुद्राक्ष शिला से बना प्राचीन कूप 

पहाड़ी की तलहटी पर स्थित यह नवीन मंदिर कदाचित गोवा के विशालतम मंदिरों में से एक है। मंदिर का जलकुंड भी गोवा के अन्य मंदिरों के जलकुण्डों से अपेक्षाकृत विशाल है। स्वच्छ लेटराइट शिलाओं द्वारा निर्मित जलकुंड अत्यंत सुन्दर प्रतीत होता है। जलकुंड के एक कोने में एक गोलाकार कुआं है। वह भी मंदिर के समान एक नवीन संरचना जैसा लगता है। बताया जाता है कि कुआं प्राचीन मंदिर का मूल प्राचीन कुआं है।

म्हालसा नारायणी मंदिर का इतिहास

आरम्भ से ही यह मंदिर वरुणापुरम में स्थित था जिसे अब वेर्णा कहते हैं। १६वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने इसे पूर्णतः ध्वस्त कर दिया था। कालांतर में फोंडा के मर्दोल गाँव में इस मंदिर की स्थापना की गई, जहां वह अब भी स्थित है। मंदिर के मूल स्थान पर अब एक नवीन मंदिर की संरचना की गयी है। म्हालसा के अन्य मंदिर पैठन, नेवासा, कारवार, कुमटा, कासरगोड तथा हरिखंडिगे इत्यादि स्थानों में भी हैं। म्हालसा अनेक सारस्वत ब्राह्मण परिवारों एवं कुछ अन्य समुदायों की कुलदेवी हैं।

म्हालसा नारायणी मंदिर का स्थापत्य

इस मंदिर का स्थापत्य अत्यंत अनूठा है। इसे एक संकुल के समान निर्मित करने की योजना है जिसके कुछ भागों का निर्माण अब भी शेष है। प्रवेश द्वार पर लगे मानचित्र में मंदिर संकुल के विभिन्न भागों का वर्णन है।

श्री म्हालसा नारायणी मंदिर संकुल - गोवा 

श्री म्हालसा नारायणी मंदिर संकुल

मुख्य मंदिर में एक अत्यंत ही विशाल मंडप है जिसकी छत आयताकार वक्रीय गुम्बद के समान है। ग्रेनाइट शिलाओं द्वारा निर्मित इसके चमचमाते तल पर इस गुम्बद का प्रतिबिम्ब इतना स्पष्ट झलकता है कि जब आप उस तल पर चलते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है मानो आप गुम्बद से लटके हैं। इसका श्रेय मंदिर प्रबंधन को भी जाता है जो मंदिर को अत्यंत स्वच्छ रखते हैं। इस मंदिर के निर्माण में प्रचुर मात्रा में ग्रेनाइट शिलाओं का प्रयोग किया गया है।

मंदिर के भीतर का दृश्य 

नवीन मंदिर एवं प्राचीन जलकुंड एक दूसरे के समक्ष स्थित हैं। मंदिर के एक ओर बच्चों की पाठशाला है तथा दूसरी ओर कल्याणमंडप अथवा विवाह मंडप है। मंदिर एवं जलकुंड के चारों ओर सुन्दर बगीचे हैं जिनका उत्तम रखरखाव किया जाता है।

म्हालसा नारायणी का विग्रह

देवी की प्रतिमा कृष्ण वर्णीय शिला में निर्मित है। यह प्रतिमा गोवा में ही स्थानीय शिल्पकारों ने गढ़ी है। इसमें देवी ने अपनी चार भुजाओं में क्रमशः त्रिशूल, तलवार, असुर का शीष तथा एक पात्र पकड़ा है। उन्होंने यज्ञोपवीत भी धारण किया हुआ है। यह किंचित असाधारण है क्योंकि यज्ञोपवीत साधारणतः पुरुष धारण करते हैं। वे एक असुर के ऊपर खड़ी हैं जिसका कदाचित उन्होंने वध किया है। यह उनका देवी अवतार है क्योंकि खंडोबा की पत्नी के रूप में उन्हें सामान्यतः खंडोबा के साथ अश्वारोहण करते दर्शाया जाता है।

मनोहारी चंद्रशिला 

मुख्य विग्रह के दोनों ओर दो अन्य प्रतिमाएं हैं। वे भी उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित हैं। उनके बाईं ओर अर्धनारीश्वर की प्रतिमा है जो भगवान शिव तथा देवी पार्वती का संयुक्त रूप है। दाहिनी ओर हरिहर की प्रतिमा है जो भगवान शिव एवं भगवान विष्णु का संयुक्त रूप है। देवी के बायीं ओर एक लघु मंदिर है जिसके भीतर शारदाम्बा की प्रतिमा है। वहीं, दाहिनी ओर भी एक लघु मंदिर है जो आदि शंकराचार्यजी को समर्पित है। प्रत्येक मंदिर के प्रवेशद्वार पर सुन्दर चंद्रशिला है, जैसा हमारे प्राचीन मंदिरों में सामान्यतः होता था।

64 योगिनी मंदिर

मुख्य मंदिर के बाहर, दाहिनी ओर स्वर्णाकर्षण भैरव का मंदिर है। इसका शाब्दिक अर्थ है, भैरव जो स्वर्ण को आकर्षित करने में समर्थ है। उनके दाहिनी ओर एक अनूठा 64 योगिनी मंदिर है। इसमें भी एक गोलाकार में 64 योगिनियाँ हैं। मंदिर के बाहर एक फलक पर सभी 64 योगिनियों के क्रमवार नाम लिखे हुए हैं। मध्य में संहार भैरव की प्रतिमा है जो संहार का प्रतीक है। भारत के अन्य 64 योगिनी मंदिरों की तुलना में इसमें दो भिन्नताएं हैं। एक, यह अत्यंत लघु है। दूसरा, अन्य मंदिरों के समान सभी 64 योगिनियों को मुक्तांगण में न रखते हुए उन्हें एक छोटे से मंदिर के भीतर रखा गया था, जिस पर छत भी थी।

इस संकुल में 64 योगिनी मंदिर के दर्शन के पश्चात यह तो स्पष्ट होता है कि गोवा में पूर्व से ही 64 योगिनी मंदिर उपस्थित रहा है। इसी लिए तो इस मंदिर के नवीन निर्माताओं के मस्तिष्क में यह योजना क आयी और उन्होंने इस मंदिर के लिए 64 योगिनियों के क्रमवार नाम भी चुने हैं।? 

महालसा नारायणी मंदिर के उत्सव

देवी मंदिर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं बड़ा उत्सव, बिना किसी संदेह के, नवरात्रि ही है। इसके अतिरिक्त, मंदिर में राम नवमी का उत्सव भी धूमधाम से मनाया जाता है जिसमें भगवान राम की उत्सव मूर्ति का पूजन किया जाता है। इस अवसर पर झूले का भी आयोजन किया जाता है। मंदिर का वार्षिक उत्सव प्रति वर्ष चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी से अष्टमी तक मनाया जाता है। यह लगभग चैत्र नवरात्रि के पश्चात आता है।

नुपुर तीर्थ एवं हनुमान मंदिर

ऐसी मान्यता है कि नुपुर तीर्थ को देवी ने खोद कर स्वयं बनाया था। यह मुख्य मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। यह एक छोटा चौकोर जलकुंड है जो एक भूमिगत जलस्त्रोत से जुड़ा हुआ है। इसके एक कोने में एक छोटा सा मंदिर है जिसके भीतर एक शिवलिंग है। जलकुंड के समीप लगे सूचना पटल के अनुसार यह प्राचीन जलकुंड उसके भीतर स्थित जलस्त्रोत के पुनरुद्धार एवं जल संचयन परियोजना का भाग है।

हनुमान एवं परशुराम मंदिर गोवा 

तीर्थ के समीप, वास्तव में सड़क के समीप एक नवीन हनुमान मंदिर है। हनुमान मंदिर का स्थापत्य भी मुख्य महालसा मंदिर के स्थापत्य से मेल खाता है। हनुमान के विग्रह के दाहिनी ओर परशुराम का मंदिर है तथा बाईं ओर काल भैरव का मंदिर है। 

मल्हारी मार्तंड अथवा खंडोबा मंदिर

यह मंदिर महालसा नारायणी मंदिर का ही एक भाग होते हुए भी उससे कुछ किलोमीटर दूर स्थित है। दोनों ही मंदिर वेर्णा औद्योगिक क्षेत्र में स्थित हैं। इस मंदिर का मंडप अब भी निर्माणाधीन है।

मल्हारी खंडोबा मंदिर का द्वार 

मुख्य मंदिर के भीतर एक शिवलिंग स्थापित है। मंदिर की चौखट पर की गयी अप्रतिम उत्कीर्णन ने मेरा मन मोह लिया था। उस पर दोनों ओर द्वारपाल भी उत्कीर्णित हैं। बाहर एक छोटा सा मंदिर है जिसके भीतर एक प्राचीन मूर्ति के अवशेष तथा एक त्रिशूल संरक्षित किया गया है। उसके बाहर लगे पटल पर ‘श्री मल्हाराया नमः’ लिखा हुआ है।

गोवा के इतिहास का वह भाग, जिसका उल्लेख पुराणों में है तथा जिसका पुनरुद्धार किया जा रहा है।

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